31. कालसी के ऋषि का निधन
कालसी ऋषि ने जब अपना अन्तिम समय निकट जाना तो अराधना की कि प्रभु ! मुझे साकार रूप
में एक बार प्रत्यक्ष दर्शन देकर कृतार्थ करें। उधर श्री पाउँटा साहिब नगर में
गोबिन्द राय (सिंघ) जी भी व्याकुल दिखाई देने लगे। उन्होंने तुरन्त नाहन से मेदनी
प्रकाश को बुला भेजा और कहा हमारे सँग यमुना के पार शिकार करने चलो। नरेश फतेहशाह
के क्षेत्र में जाने का अब कोई भय नहीं था क्योंकि उसके साथ मैत्री की सँधि हो चुकी
थी। गुरू जी शिकार खेलते-खेलते कालसी के निकट पहुँच गये। ऋषि ने अपना अन्तिम समय
निकट जानकर अपने सेवक से कहा: जाओ, जल्दी से उस युवक को ढुँढ लाओ जो इन दिनों यहीं
विचरण कर रहें हैं। सेवक चान्दों ने पूछा आप उनका परिचय दें अथवा कोई पहचना बता दें
जिससे उनको मिलने में और पहचानने में सहजता हो जाए। इस पर ऋषि ने कहा– वह सुन्दर
शस्त्रधारी, लम्बे तथा तेजस्वी युवक हैं जिनकी विशेष पहचान उनके बाजू सीधे करने पर
इतने लम्बे हैं कि वह घूटनों पर स्पर्श करते हैं। जैसे ही वह मिलें उनको मेरा
सन्देश देना कि मैं मृत्यु शैया पर हूँ और अन्तिम दीदार की चाहत रखता हूँ। सेवक उनका
सन्देश लेकर आसपास के वनों में ऐसे युवक की खोज में जुट गया। जल्दी ही उसका परिश्रम
रँग लाया, उसे घोड़ों की टाँगों के चिन्ह दिखाई दिये। वह इन टापों के पीछे चल पड़ा,
कुछ ही दूर जाने पर उसे राजसी पोशाकों में कुछ शिकारी दिखाई दिये। वह तुरन्त वहीं
पहुँचा परन्तु दुविधा में था कि वह युवक इनमें से कौन है ? कैसे पहचाना जाए, जब तब
कि वह अपने बाजू सीधे नहीं करते। कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात चान्दो, ऋषि जी
द्वारा बताये गये परिचय के अनुमान श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के पास पहुँचा और विनती
करने लगा कि कृप्या आप अपने बाजू सीधे करके दिखाएँ ताकि मैं जान सकूँ के आप वहीं
हैं, जिसे मेरे गुरू जी ने खोजने भेजा है। गुरू जी मुस्कुरा दिये और बाजू सीधे करके
उसे दिखाए। वास्तव में वह घूटनों को स्पर्श कर रहे थे। वह यह देखते ही खुशी से
चिल्ला उठा। आप वहीं हैं जिसके लिए मेरे गुरू जी ने सन्देश भेजा है। उत्तर में गुरू
जी कहने लगे: हाँ तुमने ठीक पहचना है। हम उन्हें ही मिलने आये हैं। तभी नरेश मेदनी
प्रकाश को स्मरण हो आया कि यहाँ पर तो एक दीर्घ आयु के ऋषि जी का आश्रम है जहाँ हम
कुछ समय पहले उनके दर्शनों को आये थे। सेवक चान्दों ने गुरू जी को ऋषि का सन्देश
सुनाया और कहा वह केवल एक बार आपके दर्शन करना चाहते हैं और कहते हैं कि आपके दर्शनों
के लिए ही उनके प्राण शरीर में अटके हुए हैं, जैसे ही आप उनको दर्शन देकर कृतार्थ
करेंगे तो वह शरीर त्याग देंगे। गुरू जी ओर उनके सभी सँगी गुरू जी के आश्रम में
पहुँचे। उस समय वह घूप में लेटे बेसुध पड़े थे, शीत ऋतु की सँध्या होने को थी। गुरू
जी ने उनको अपनी गोदी में लिया और जल मँगवाकर पिलाया, जैसे ही ऋषि जी सुचेत हुए वह
खुशी से खिल उठे और गुरू जी के चरणों में लेट गये और कहने लगे: बस अब मेरी अन्तिम
इच्छा पूर्ण हुई, अब मेरे श्वासों की पूँजी समाप्त है। और देखते ही देखते उन्होंने
शरीर त्याग दिया। गुरू जी ने वहीं उनकी अँत्येष्टि उनकी इच्छा अनुसार कर दी और
वापिस लौट आये।