29. रामराय की मृत्यु
रामराय के डेरे में उनके बिगड़े हुए मसँदों की चलती थी। रामराय उनकी कठपुतली बनकर रह
गये थे। एक दिन रामराय जी समाधि लगाकर पवन आहारी हो गये। जिससे उनकी दिल की गति अति
धीमी हो गई। मसँदों ने उनको मृत घोषित कर दिया परन्तु उनकी पत्नी पँजाब कौर ने इस
बात का सख्त विरोध किया और कहा कि वह अभी जीवित हैं और मुझे बताकर समाधिलीन हुए
हैं। किन्तु मसँदों ने बलपूर्वक उनका अग्नि सँस्कार कर दिया। इस बात की सूचना पंजाब
कौर ने गुरू जी को श्री पाउँटा नगर भेजी। गुरू जी तुरन्त शोक समाचार पाते ही
देहरादून पहुँचे। वास्तव में मसँदों ने अवसर पाते ही रामराय को जीवित जलाकर उनकी
हत्या कर दी थी और वह आश्रम के चढ़ावे का सारा धन स्वयँ हथियाना चाहते थे। इसी
सँदर्भ में माता पँजाब कौर ने गुरू जी से सहायता माँगी थी। अतः गुरू जी अपने वचन के
अनुसार उनकी सहायता करने पहुँच गये। गुरू जी ने युक्ति से काम लिया। सभी मसँदों को
शोक सभा में आमँत्रित किया गया और सभी को पुरस्कृत करने का झाँसा दिया गया। जब सभी
इक्टठे हुए तो गुरू जी के शूरवीरों ने अपराधियों को धर दबोचा और माता पँजाब कौर के
कथन अनुसार कठोर दण्ड दिये। कुछ को तो बँदीगृह में डाल दिया। गुरू जी ने उन्हें
सम्बोधित करते हुए स्पष्ट किया कि वे देहरादून घाटी से दूर नहीं, कुछ की घण्टों में
वह यहाँ पहुँच सकते हैं। यदि किसी मसँद की शिकायत दोबारा उन तक पहुँची तो उसको
मृत्युदण्ड दिया जा सकता है। इस प्रकार गुरू जी माता पँजाब कौर की सहायता करके लौट
आये।