26. निर्मला अभियान
भारतीय समाज में पठन-पाठन व अध्ययन के काम को ब्राहम्णों ने अपनी धरोहर बना रखा था।
ब्राहम्ण सँस्कृत भाषा को देव बाणी कहते थे और अन्य किसी को यह भाषा पढ़ने की अनुमति
नहीं प्रदान करते थे। गुरू जी ने निर्णय लिया कि ब्राहम्णों के इस एकाधिकार को
समाप्त करना आवश्यक है। समस्त जनसाधारण को सँस्कृत व अन्य भाषाएँ पढ़ने का अधिकार
होना चाहिए। इस प्रतिबन्ध से मुक्ति दिलवाने के लिए गुरू जी ने श्री पाउँटा साहिब
जी में आपका आश्रय लिये हुए एक पण्डित से कहा कि वह सिक्खों को सँस्कृत पढ़ाएँ। उसने
ऐसा करने से साफ इन्कार कर दिया। वह ब्राहम्णों के अतिरिक्त जनसाधारण को सँस्कृत
पढ़ाना, ब्राहम्णों के अधिकारों पर छापा मारना समझते था। इस घटना के कारण गुरू जी ने
अपने निर्णय को शीघ्र व्यवहारिक रूप दे दिया। उन्होंने रघुनाथ ब्राहम्ण को तो कुछ
नही कहा, परन्तु अपने सेवकों में से पाँच सुयोग्य सिक्खों का चुनाव किया। इस चुनाव
में गुरू जी ने उनके विद्या प्रेम और शिक्षा अर्जन के सामर्थ्य को परखा और उन्हें
गेरूए वस्त्र पहनाकर बनारस में सँस्कृत का अध्ययन करने भेज दिया। वे कई वर्ष
सँस्कृत पढ़ते रहे। जहाँ इन सिक्खों ने विद्या ग्रहण की, वहाँ अब चेतन मठ नामक गुरूजी
संगत है। सँस्कृत का अध्ययन करने गये सिक्खों के नाम इस प्रकार हैं:
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1. राम सिंघ
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2. करम सिंघ
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3. गण्डा सिंघ
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4. वीर सिंघ
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5. सोभा सिंघ
गुरूकाल में ही इन सँस्कुत विद्या प्राप्त सिक्खों ने देश के
विभिन्न क्षेत्रों में गुरूमत सँस्कार व शिक्षा का प्रचार आरम्भ कर दिया। वे सिक्ख
पँथ के मूल प्रचारक कहलाये। बाद में उन्हीं की परम्परा में निर्मले महँतों ने
प्रचार को सुचारू ढँग से चलाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की।