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24. नाहन नगर में पदार्पण

हिमाचल प्रदेश के बिलकुल पूर्व में सिरमौर नाम की पर्वतीय रियासत थी। जिसकी राजधानी नाहन नगर थी। नाहन श्री आनंदपुर साहिब जी के पूर्व दक्षिण की ओर लगभग 100 कोस की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर उन दिनों मेदनी प्रकाश नाम का नरेश राज्य करता था। सिरमौर क्षेत्र के पूर्वी सीमा पर यमुना नदी बहती है। यमुना के उस पार गढ़वाल है, जहाँ पर नरेश फतेहशाह राज्य करता था। इन दोनों राजाओं में सीमा विवाद के कारण तीव्र मतभेद चल रहा था। फतेहशाह ने मेदनी प्रकाश के कुछ भू-भाग पर अवैध कब्जा कर रखा था। जब इसकी पुत्री की सगाई कहिलूर के नरेश भीमचँद के पुत्र के सँग हुई तो यह अपना पक्ष सैन्य दुष्टि से भारी महसूस करने लगा और मेदनी प्रकाश को आँखें दिखाने लगा। जब मेदनी प्रकाश को इस रहस्य का पता लगा तो वह श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की सहायता लेने श्री आनंदपुर साहिब जी पहुँचा। उसको मालूम हुआ कि गुरू जी आपसी झगड़ों का कड़ा विरोध करते हैं और मतभेदों का कोई सम्मानजनक हल निकाल लेते हैं। अतः उसने गुरू जी के समक्ष प्रार्थना की कि आप मेरे यहाँ नाहन नगर पधारें वहाँ बहुत रमणीक स्थल है और घने जँगलों में शिकार भी बहुत है, जिससे आपको हर प्रकार की सुविधा ही होगी। यह निमँत्रण पाकर माता गुजरी जी ने भी गुरू जी को नाहन चलने का परामर्श दिया। वह कहिलूर की विस्फोटक स्थिति से कुछ समय के लिए दूर चले जाने के पक्ष में थीं। गुरू जी ने माता की का आदेश मानकर नाहन प्रस्थान किया किन्तु श्री आनंदपुर साहिब जी की सुरक्षा के लिए अपनी टुकड़ियाँ पीछे छोड़ गये। नाहन नगर में पदार्पण करने पर मेदनी प्रकाश ने गुरू जी का भव्य स्वागत किया और आपको रमणीक स्थल दिखाये, जिनमें से यमुना नदी के किनारे का ऊँचा क्षेत्र आपके मन को भा गया। यह स्थान सामरिक दृष्टि से अति उत्तम था। जब आपने यहाँ पाँव टिका दिया तो स्थानीय जनता ने इस स्थान का नाम श्री पाउँटा साहिब जी रख दिया। आपने यहाँ अक्टूबर, 1684 में नगर निर्माण का आदेश दिया। गुरू जी के साथ हजारों स्वयँ सेवक सैनिक रूप में थे इसलिए नरेश मेदनी प्रकाश की शक्ति अचानक बहुत अधिक हो गई। अतः इसके विपरीत नरेश फतेहशाह स्वयँ को कुछ दबाव में महसूस करने लगा। किन्तु गुरू जी तो प्रेम का सँदेश प्रसारित करने वाले थे। युद्ध तो वह चाहते ही नहीं थे परन्तु शक्ति सन्तुलन की दुष्टि से सैन्यबल रखना उनका एक मात्र उद्देश्य था। गुरू जी ने एक प्रतिनिधि मण्डल भेजकर नरेश फतेहशाह को बुला लिया। फतेहशाह को गुरू जी ने समझाया बुझाया। वह गुरू जी के वचनों से इतना प्रभावित हुआ कि अपने पुराने शत्रु मेदनी प्रकाश को भागकर गले लगा लिया और एक विशेष सँधि के अर्न्तगत उसका क्षेत्र उसको लौटा दिया। समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर गुरू जी ने श्री पाउँटा साहिब जी में एक किले का निर्माण करवाया। सेना की भर्ती की तरफ विशेष ध्यान केन्द्रित किया और युद्ध अभ्यास में तीव्रता लाने के लिए अपनी सेना का पुर्नगठन किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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