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23. कालसी का ऋषि

एक दीर्द्य आयु का तपस्वी यमुना के किनारे पर्वतीय क्षेत्रों में बसे कस्बे कालसी में रहता था। वह जीवन भर प्रभु की निष्काम अराधना में व्यस्त था। जिस कारण उसको दिव्य दुष्टि प्राप्त हो गई। किन्तु उसका एक मात्र लक्ष्य प्रभु चरणों में अभेद होना था। वह साँसारिक बातों में कोई रूचि नहीं रखते थे। अतः एकान्तवास ही उनका जीवन था किन्तु प्रभु की निकटता प्राप्त होने के कारण उनकी स्तुति भी कस्तूरी की तरह फैली हुई थी। जब नाहन के नरेश को मालूम हुआ कि मेरे पड़ौसी तथा प्रतिद्वँद्वी नरेश फतेहशाह की लड़की की सगाई कलिहूर के नरेश भीमचँद के लड़के के साथ हो गई है तो वह बहुत चिन्तित हुआ। उसके भय हो गया कि कहीं फतेहशाह की शक्ति बढ़ गई तो शक्ति सन्तुलन के बिगड़ने पर वह मेरे पर हावी हो जाएगा। अतः वह कोई उपाय सोचने लगा। उसके एक मँत्री ने उसे परामर्श दिया कि किसी गुरू या पीर से इस गम्भीर विषय में विचार कर लिया जाये शायद वह कोई युक्ति बता दे। नरेश ने अपने निकटवर्ती को ऐसे पूर्ण पुरूष की खोज करने को कहा। इस पर एक व्यक्ति ने बताया कि यमुना के उस पार चकरोला के निकट कालसी कस्बे में एक वृद्ध ऋषि रहते हैं जो अच्छे-अच्छे सुझाव और उचित निर्णय देकर समस्या का समाधान बता देते हैं। नरेश मेदनी प्रकाश अपने मँत्रियों के साथ कासली ऋषि के पास पहुँचा। ऋषि जी लगभग 100 साल के हो चुके थे। अतः वह शरीर के जरजर होने के कारण किसी से भेंट इत्यादि नहीं करना चाहते थे किन्तु मेदनी प्रकाश को उनसे भेंट की अनुमति मिल गई। नरेश ने अपना सँकट बताया और समाधान पूछा। उत्तर में ऋषि ने कहा: आपको किसी पराक्रमी पुरूष की सहायता चाहिए। यह इन दिनों युवावस्था में शस्त्रधारी योद्धा के रूप में इन पर्वतीय क्षेत्र में ही विचरण कर रहे हैं। देखने में बहुत तेजस्वी, सुन्दर और कुलीन परिवार से हैं। आप उनकी शरण में जाओ। नरेश ने पूछा: आप इन्हें कैसे जानते हैं। उत्तर में ऋषि ने बताया: कि मैं जब प्रभु आराधना में प्रभु की निकटता प्राप्त करना चाहता हूं तो महा आनँदित होता हूं। कभी-कभी मेरे विचार में आता है कि प्रभु साकार हो, दर्शन दें तो मुझे एक अति सुन्दर, तेजस्वी, शस्त्रधारी केशों वाला युवक दिखाई देता है। मैं उसी के दर्शन करता रहता हूं। अब प्रश्न यह उठता है कि वह युवक कौन है और कहाँ मिलेगा ? सभी ने जब ध्यान केन्द्रित करके विचारा तो उनको एक ही व्यक्ति दृष्टिगोचर हुआ। वह थे श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के बेटे श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी, श्री आनंदरपुर साहिब जी के वासी। नरेश मेदनी प्रकाश ने समस्त सहयोगियों से विचारविमर्श के पश्चात गुरू जी को अपनी नगरी नाहन आने का निमँत्रण भेजा तो गुरू जी ने स्वीकार कर लिया और यमुना किनारे नया नगर पाऊँटा साहिब बसाकर रहने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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