19. अफगानिस्तान की संगत
अफगानिस्तान के भिन्न-भिन्न क्षेत्र से प्रायः संगत गुरू दर्शनों के लिए आती रहती
थी। इस पर दयालदास जी की प्रेरणा और उनकी योजना के अर्न्तगत वहाँ की संगत एक विशाल
काफिले के रूप में एकत्रित होकर गुरू जी के दर्शनों के लिए आई। इनमें काबुल, कँधार,
बलख बुखारे तथा गजनी आदि नगरों की संगत बहुत प्रेम तथा श्रद्धा के साथ कुछ विशेष
उपहार लेकर उपस्थित हुई। काबुल के सेठ दुनीचन्द ने एक विशेष "मखमली तम्बू" भेंट किया
यह उसने बहुत श्रद्धा के साथ कई वर्षों में दो लाख रूपये की लागत से तैयार करवाया
था। इस पर अति सुन्दर मीनाकारी करवाई गई थी, जिसकी छटा अनूप थी। गुरू जी इसे देखकर
अति प्रसन्न हुए। अन्य श्रद्धालुओं ने अदभुत वस्तुएँ भेंट की जिससे वस्तुओं के
अम्बार लग गये। इनमें कुछ उपहार ऐसे थे जो युद्ध के समय रणक्षेत्र में काम आते थे,
इसलिए गुरू जी ने उन सिक्खों को विशेष रूप से सम्मानित किया जो युद्ध समाग्री लाये
थे।