17. विवाह
सन 1684 में लाहौर नगर से बहुत सी संगत एक काफिले के रूप में गुरू दर्शनों को श्री
आनंदपुर साहिब जी पहुँची। इनमें रामशरण नाम का गुरूसिक्ख, युवक श्री गुरू गोबिन्द
सिंघ जी के सौन्दर्य तथा प्रतिभा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसके दिल में इच्छा
उत्पन्न हुई कि यदि वह अपनी पुत्री जीतो का नाता गुरू जी से कर दे तो जोड़ी अदभुत
रहेगी। यह कल्पना लेकर वह माता गुजरी और दादी मां नानकी जी के समक्ष उपस्थित हुआ।
माता जी ने बहुत प्रसन्नता से उसकी विनम्र विनती सुनी और युवती जीतो को भी देखा जो
कि साथ में दर्शनों के लिए आई थी। युवती को देखकर माता जी उसके सौन्दर्य पर
मँत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने उस समय अपनी सास नानकी जी से विचारविमर्श किया और कहा
हमें यह रिश्ता मन्जूर है। स्वीकृति मिलते ही रामशरण जी ने आग्रह किया मैं सगाई की
रीति सम्पूर्ण करना चाहता हूं। यह अनुरोध भी स्वीकार कर लिया गया क्योंकि लाहौर की
संगत की यही इच्छा थी। सगाई की रस्म गुरू मर्यादा को ध्यान में रखकर बहुत शान्त
वातावरण में कर दी गई कोई विशेष समारोह का आयोजन नहीं किया गया। तदपश्चात रामशरण जी
ने प्रस्ताव रखा कि आप लाहौर में बारात लेकर आयें। किन्तु गुरू जी ने कहा हमारा वहाँ
जाना कठिन है, कृप्या आप यहाँ आ जाएँ और यहाँ विवाह सम्पन्न किया जाए। इस पर रामशरण
ने अपनी कुछ कठिनाईयाँ बताई कि मैं दुविधा में हूं क्योंकि मेरी मँशा लाहौर में ही
आपका स्वागत करने की है। गुरू जी ने कहा हम आपकी भावनाओं का ध्यान रखते हुए यहाँ एक
नया लाहौर नगर बसा देते हैं, जिससे आपकी उलझन समाप्त हो जायेगी। इस पर रामशरण जी ने
कहा कि यदि ऐसा हो सकता है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बस फिर क्या था दोनों पक्ष
विवाह की तिथि पर सहमत हो गये और रामशरण जी लाहौर की संगत के साथ वापस तैयारी के
लिए चले गये। इधर गुरू जी ने श्री आनंदपुर साहिब जी के निकट 7 कोस की दूरी पर एक नये
नगर की रचना के लिए शिलान्यास किया और नगर का नाम गुरू का लाहौर रखा। कुछ ही दिनों
में नगर में चहल-पहल हो गई। दूर-दूर से व्यापारी वहीं आकर बसने लगे। नगर के तैयार
होने पर लाहौर से सपिरवार रामशरण जी यहीं आकर बस गये। फिर उन्होंने माता गुजरी जी
से अनुरोध किया कि आप निश्चित समय पर बारात लेकर आयें। ऐसा ही किया गया, श्री गुरू
गोबिन्द सिंघ जी दूल्हा बने और बारात लेकर नये लाहौर नगर में अपने ससुराल पहुँचे।
वहाँ कुल रीति के अनुसार गुरू जी का विवाह सम्पन्न किया गया। इस प्रकार दूल्हन लेकर
बारात लौट आई। माता गुजरी जी की पुत्रवधु जहाँ गुणवँती थी वहीं अति सुन्दर भी थी।
उसने आते ही माता गुजरी जी का मन मोह लिया। वह नम्र और मधुरभाषी थी।