14. जल क्रीड़ाएँ
बाल्यकाल से ही श्री गुरू गोबिनद सिंघ जी को पटना साहिब नगर में गँगा जी के जल में
तैरने का शोक था। वह श्री आनंदपुर साहिब आकर और बढ़ गया। कई बार आपने अपनी आयु के
साथियों के साथ सतुलज नदी में स्नान करते हुए दो दल स्थापित कर लिए और तैराकी की
प्रतियोगिताएँ आयोजित कीं। एक बार एक प्रतिद्वँद्वी दल का नेता गुलाब राय पराजित हो
गया किन्तु वह अपनी पराजय स्वीकार नहीं कर रहा था। जिस कारण गुरू गोबिन्द सिंघ जी
ने उसके नेत्रों पर जोर-जोर से छींटे मारने शुरू कर दिये। वह पानी के वेग को सहन नहीं
कर पाया और नदी से बाहर निकलकर भाग खड़ा हुआ। जल्दी में बाहर दरी से अपने वस्त्र
उठाये और पहनने लगा। इसी बीच उसने गलती से गुरू जी की पगड़ी उठाकर सिर में बाँध ली।
तभी सँतरी ने बताया कि यह पगड़ी आप की नहीं यह तो गुरू जी की है। वह जल्दी में भूल
सुधारने के विचार से पगड़ी बदलने लगा। तभी गुरू जी भी लौट आये और उन्होंने कहा,
गुलाब राय अब यही पगड़ी बांधे रहो। समय आयेगा जब तुम्हारी भी पूजा होगी। तुम भी कुछ
आध्यात्मिक प्राप्तियाँ करोगे। परन्तु नम्रता धारण करना। जिससे सदैव सम्मान बना
रहेगा। गुलाब राय रिश्ते में गुरू जी का फुफेरा भाई लगता था।