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8. मधुर मोसीकी (सँगीत) हराम नहीं (अदन नगर, अरब देश)

जहाज़ से उतरकर श्री गुरू नानक देव जी अदन नगर की सैर के लिए अन्य यात्रियों के साथ नगर के मुख्य पयर्टक स्थल पर पहुँचे। उनकी विचित्र वेषभूषा को देखकर वहाँ पर जनसाधारण के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि वह नया फ़कीर किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित है ? क्योंकि गुरुदेव ने उस समय कुछ मिला-जुला स्वरूप धारण कर रखा था। यूँ तो उन दिनों भी अदन एक मुस्लिम देश था परन्तु वहाँ पर जहाज़रानी का बड़ा केन्द्र होने के कारण हर तरह के यात्रियों का आवागमन बना रहता था। इसलिए अन्य समुदायों पर भी प्रतिबन्ध जैसी कोई बात नहीं थी। गुरुदेव के लिए कीर्तन भी जरूरी था। अतः वहाँ पर भी उन्होंने भाई मरदाना जी से कीर्तन का आग्रह किया। भाई जी ने कीर्तन प्रारम्भ किया जिसकी मधुरता से दूर-दूर से जनसमूह आकर एकत्रित हो गया क्योंकि ऐसा मधुर सँगीत उन्होंने पहले कभी सुना नहीं था। भाषा परिवर्तन के कारण भले ही उनको बाणी की समझ नहीं आई परन्तु सँगीत के मनमोहक जादू ने उन्हें ऐसा बाँधा कि वे वहीं के होकर रह गए। कीर्तन की समाप्ति पर स्थानीय निवासियों ने गुरुदेव से तरह-तरह के प्रश्न पूछे जिनका उत्तर देकर गुरुदेव ने उनको सन्तुष्ट कर दिया। उनका पहला प्रश्न था: आप किस सम्प्रदाय के हैं ? गुरुदेव ने उत्तर में कहा: मैं खुदा का बन्दा हूँ, बन्दगी मेरा काम है, जिससे सभी को निजात मिल सकती है, मैं किसी मजहबी जनून में विश्वास नहीं करता। दूसरा प्रश्न था: मोसीकी तो हराम है फिर आप इस मोसीकी का इस्तेमाल क्यों करते हैं ? गुरुदेव ने उत्तर दिया: यह मोसीकी भी दो प्रकार की है, पहली वह जो मन को चँचल करती है, जिस से शरीर झूमता है, दूसरी वह जिससे मन शान्त होता है, जिससे शरीर के स्थान पर रूह, आत्मा झूमती है अथवा आनन्दित होती है। ऐसी मोसीकी हराम नहीं है जो रूह को खुदा की बन्दगी के साथ जोड़ती है। इस उत्तर को पाकर सभी प्रसन्न हुए। गुरुदेव वहाँ पर दो दिन अतिथि बनकर रहे तथा उन को सतसँग के लिए एक धर्मशाला बनाने की प्रेरणा देकर वापिस जहाज़ पर लौट आए। जहाज़ पुनः चलकर अलअसवद बन्दरगाह, ज़द्दा नगर पर पहुँचा। सभी हाजी उतर गए, इस बार गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को सलाह दी कि कुछ समय के लिए वह अपनी रबाब के पुर्जे अलग-अलग कर लें। जिसको बाद में आवश्यकता पड़ने पर जोड़ लेंगे। भाई मरदाना जी ने ऐसा ही किया और रबाब को खोल कर एक गठरी में बांध लिया और वे जाते हुए काफिले के साथ चल पड़े।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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