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45. भाई लहणा जी को गुरयाई देनी और जोती जोत समाना

गुरू जी ने अपने दोनों पुत्रों श्रीचन्द और लखमीदास जी को इस योग्य नहीं माना। फिर भी उन्होंने परीक्षाऐं ली। ये परीक्षाऐं गुरू अंगद देव जी के जीवन के इतिहास में वर्णन की गई हैं। अंगद देव जी सभी परीक्षाओं में खरे उतरे।

जां सुधोसु ता लहणा टिकिओनु अंग 967

गुरू जी ने अपना जोती जोत का समय निकट जानकर एक भारी यज्ञ किया। सैंकड़ो कोसों से संगतें आने लगीं। बहुत भारी इक्टठ हुआ। तब गुरू जी ने सबके सामने अपनी गुरूगद्दी पर भाई लहणे को बैठाकर पाँच पैसे एक नारियल और कुछ सामग्री भेंट करके भाई लहणा जी के चरणों पर मस्तक टेक दिया। इस प्रकार अपनी जोत भाई लहणे में प्रवेश करा दी और भाई लहणे को अंगद नाम दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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