43. शेख मालो जी
श्री गुरू नानक देव जी के करतारपुर में निवास से आसपास के
क्षेत्र में सिक्खी का प्रसार दूर तक हो गया था, क्योंकि गुरुदेव के सिद्धाँतों के
अनुसार, समस्त मानव मात्र एक प्रभु की सन्तान है अतः वर्गीकरण रहित समाज की स्थापना
का ध्वज फहरा दिया गया, जिसमें जाति-पाति, रंग, नस्ल, भाषा, सम्प्रदाय इत्यादि का
भेदभाव समाप्त करके सभी को मिलजुल कर रहने का गुरू उपदेश प्राप्त होने लगा। यह सब
देखकर शेख मालो जी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरुदेव के समक्ष अपनी शँका
व्यक्त की कि साधरणतः हिन्दू तथा मुसलमानों की जीवन पद्धति में बहुत अन्तर है।
इसलिए आपकी दृष्टि में कौन सा सिद्धाँत उत्तम है ? गुरुदेव ने उत्तर में कहा: "हिन्दू"
"मुसलमानों" में "साँस्कृतिक" अंतर हैं। यह अन्तर देश-वेष परम्पराओं तथा भाषा
इत्यादि के कारण दिखाई देता है किन्तु मानवीय आचार-विचार एक ही है, क्योंकि परमात्मा
प्रत्येक प्राणी मात्र में एक सी ही ज्योति लिए विद्यमान है। इस उत्तर से सन्तुष्ट
होकर शेख ने पुनः निवेदन किया: कृपया आप अल्लाह के दरबार में प्रतिष्ठा सहित प्रवेश
पाने का अपना सिद्धाँत बताएँ। गुरुदेव ने उत्तर में कहा: "अल्लाह", "परमेश्वर" के
गुण-गायन करो, उसकी इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए, दुख-सुख सम कर जानो। समस्त
जीवों के लिए मन में दया धारण करके निष्काम सेवा, परोपकार के लिए अपने आपको समर्पित
कर दो, तो अल्लाह के दरबार में अवश्य ही आदर सहित प्रवेश पाओगे तथा इस जगत मे भी
सम्मान प्राप्त करोगे। शेख जी बहुत दिन गुरू चरणों में रहकर सेवा करने का अभ्यास
दृढ़ करते रहे और सिक्खी का व्यवाहरिक स्वरूप समझकर लौट गये।