42. कर्मचँद, कालू
श्री गुरू नानक देव जी के दरबार में एक दिन कर्मचँद, कालू नाम
का एक आदमी बड़ी तीव्र अभिलाषा लेकर आया और उसने गुरुदेव से पूछा, हे सदगुरू बाबा जी
! आपकी बाणी में मनमुख और गुरुमुख सिक्खों का विस्तृत वर्णन है। कृपया आप हमें
समझाएँ कि मनमुख तथा गुरुमुख सिक्ख के क्या लक्षण होते हैं ? गुरुदेव ने उत्तर में
कहा– मनमुख वे लोग होते हैं जो अपने मन के अनुसार चलते हैं और मन की वासनाओं के
वशीभूत होकर दुष्कर्मों में सँलग्न रहते हैं भले ही वे परिणामस्वरूप कष्ट भोग रहे
हों। इनके विपरीत गुरुमुख वे लोग हैं जो गुरू अनुसार चलते हैं और पापों और दुष्कर्मो
को त्यागकर गुरू ज्ञान ज्योति के प्रकाश में सत्य मार्ग के पथिक होकर जीवन निर्वाह
करते हैं भले ही इस कठिन कार्य के लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना ही क्यों न करना
पड़े। गुरुमुख का आचरण इसी प्रकार का होना चाहिए:
1. सिक्ख, मानव मात्र को अपना मित्र समझे दूसरों के हर्ष में
अपना हर्ष अनुभव करे, 2. दीनदुखी के लिए करुणा रखे, और उनकी सहायता के लिए तत्पर रहे।
अहँभाव का त्याग करके नम्रता तथा दया जैसा सदगुण धारण करें, 3. दूसरों की कीर्ति
अथवा गौरव सुनकर प्रसन्न चित हो, ईर्ष्या द्वेष को निकट न आने दे, 4. सतगुरू के
उपदेशों को श्रद्धा से निष्काम होकर, धारण करके सँसार में रहते हुए, माया से
निर्लिप्त और विरक्त होकर जीवन निर्वाह करे। वही सिक्ख वास्तव में गुरुमुख है। इसके
विपरीत आचरण करने वाला मनमुख है।