SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

40. पृथ्वी मल तथा रामां डंडी सन्यासी

श्री गुरू नानक देव जी के दरबार में एक दिन की बात है कि दो सँन्यासी आए और वहाँ पर ठहर गए। कीर्तन, कथा तथा प्रवचन आदि का प्रवाह देखकर वहाँ के सतसँग से बहुत प्रभावित हुए। उससे उनकी विचारधारा बदल गई और वे सोचने लगे कि वे क्यों न इस नई पद्धति को अपनाएँ जिससे उनका भी कल्याण हो। एक दिन गुरुदेव के सम्मुख होकर उन्होंने निवेदन किया, हे गुरुदेव जी ! जैसी महिमा सुनी थी वैसी ही यहाँ पाई है अतः हमारी इच्छा है कि हमें कोई सहज युक्ति प्रदान करें जिससे हमारा कल्याण हो, क्योंकि सँन्यास की अति कठोर तपस्या से हम ऊब गए हैं, वह अब हमारे बस की बात नहीं रही। गुरुदेव ने उन्हें साँत्वना दी और कहा– हम आपको हठ योग के स्थान पर सहज योग का सुविधाजनक मार्ग बतायेंगे जिसको हर एक गृहस्थी भी अपना सकता है और इसमें प्राप्तियाँ भी कहीं अधिक होती है, इसके विपरीत हठ तप करने वालों को मन और शरीर को साधने के लिए, शरीर को कष्ट देने पड़ते हैं। इस क्रिया के लिए हठकर्म अनिवार्य है, इसमें उन्हें ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। परन्तु निष्काम और ऊँची आत्मिक अवस्था तक पहुँचने के लिए उनके बस की बात नहीं रह पाती, क्योंकि ये लोग अपनी कामनाओं तथा वासनाओं पर नियन्त्रण नहीं कर सकते। अतः हठ मार्गी, तत्व-ज्ञान को न प्राप्त कर जीवन निष्फल गँवा देते हैं। यदि आप निष्काम एवँ ऊँची आत्मिक अवस्था से तत्व-ज्ञान को प्राप्त करके परम ज्योति में विलीन होने की प्रबल इच्छा रखते हैं तो शब्द का निध्यासन किया करें। शब्द का रस आ जाने के उपरान्त ज्योति प्रज्वलित होकर दृष्टिमान होने लगती है। मनुष्य तब आँनद विभोर हो जाता है। यह शब्द का सुखद अनुभव ही तत्व ज्ञान तक पहुँचाने का एक मात्र साधन है किन्तु इसकी सीढ़ियाँ साधसंगत से होकर जाती हैं। अतः ध्यान रहे कि सतसँग का आसरा कभी भी छूटने न पाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.