4. महिलाओं की समस्याओं का समाधान (सख्खर
नगर, सिंध)
श्री गुरू नानक देव जी सिंधु नदी के किनारे-किनारे लम्बी यात्रा
करते हुए उच्च नगर से सख्खर नगर पहुँचे। सख्खर एक विकसित नगर है जो कि सिंधु नदी के
किनारे बसा हुआ एक विकसित नगर है। इसलिए जल साधनों के कारण उन दिनों वह एक बहुत बड़ा
व्यापारिक केन्द्र था। गुरुदेव के आगमन का समाचार फैलते ही बहुत बड़ी सँख्या में लोग
उनके दर्शनों के लिए उमड़ पड़े। आप समस्त जनसमूह को एक ईश्वर की आराधना का उपदेश देते
हुए प्रवचनों से प्रभु इच्छा में सन्तुष्ट रहने की प्रेरणा करते। एक दिन कुछ महिलाएँ
आपके पास अपनी कुछ घरेलू समस्याएँ लेकर पहुँची तथा उनका समाधन पूछने लगी। अधिकाँश
महिलाओं की समस्या गृह कलेश इत्यादि था। गुरुदेव ने उन महिलाओं की समस्याएँ ध्यान
से सुनी और उनकी मानसिक सन्तुष्टि के लिए कहा:
सुखु दुखु पुरब जनम के कीए ।। सो जाणै जिनि दातै दीए ।।
किस कउ दोसु देहि तू प्राणी ।। सहु अपना कीआ करारा हे ।। 14 ।।
हउमै ममता करता आइआ ।। आसा मनसा बंधि चलाइआ ।।
मेरी मेरी करत किआ ले चाले ।।
बिखु लादे छार बिकारा हे ।। 15 ।। राग मारू, अंग 1030
गुरुदेव ने उन महिलाओं को समझाते हुए कहा, प्राणी के कर्म ही
प्रधान है। इसी के अनुसार उसको यहाँ सभी सुख सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। ईर्ष्या
निन्दा इत्यादि से कुछ मिलने का नहीं, व्यक्ति मन की शान्ति खो देता है। सुख तो
त्याग तथा सेवा में है। यदि अभिमान त्यागकर मीठी बाणी बोलकर सगे सम्बंधियों का मन
जीत लिया जाए तो धीरे-धीरे सभी कुछ सामान्य हो जाता है। बस, बात तो धैर्य और
सूझ-बूझ से प्रभु में आस्था रखते हुए जीवन व्यतीत करने की है।