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35. भगता ओहरी तथा जापू वँसी

श्री गुरू नानक देव जी के दरबार में एक दिन दो साधारण व्यक्ति आये। जिनका नाम भगता ओहरी तथा जापू वँसी था। जब उन्होंने आपके प्रवचन सुने तो उनके हृदय में शँका उत्पन्न हुई कि वह तो अनपढ़ हैं ज्ञान तो शिक्षित वर्ग तक सीमित रहता है अतः उनका कल्याण कैसे सम्भव होगा ? गुरुदेव ने इसके उत्तर में कहा कि कर्म तो शिक्षित और अशिक्षित दोनों करते हैं शुभ कर्म करने पर कल्याण अवश्य होगा यदि व्यक्ति साधसंगत की ओट लेकर जीवन व्यतीत करे तो उसे आदर्श जीवन जीने की युक्ति प्राप्त हो जाती है। जिसमें व्यक्ति को शुभ गुणों को धारण करते हुए अशुभ गुण का त्याग करना होता है। उन्होंने फिर पूछा, हे गुरुदेव जी! अवगुणों का हम परित्याग करना चाहते हैं, परन्तु हम अज्ञानी हैं हमसे सहज में कुकर्म हो जाते हैं, क्योंकि हमें मालूम नहीं कि जीवन में किन-किन बातों से सतर्क रहना चाहिए ? गुरुदेव ने इस पर कहा, मनमुख व्यक्ति जैसा आचरण नहीं करना चाहिए अर्थात मनमानी नहीं करनी चाहिए। गुरु उपदेशों को सदैव सामने रखकर जीवन जीना चाहिए। जिसके अन्तर्गत: 1. दूसरों के साथ ईर्ष्या, द्वेष, चुगली इत्यादि नहीं करनी। 2. अभिमान त्यागकर नम्रता का जीवन जीना। 3. दूसरों पर अपनी "विचारधारा" कभी भी बलपूर्वक न लादना। जहां तक सम्भव हो निष्काम-भाव से सेवा, परोपकार करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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