34. कत्थू नँगल का समर्पित किशोर
श्री गुरू नानक देव जी की कीर्ति जैसे-जैसे फैलने लगी तैसे-तैसे
श्रद्धालु भी आपके दर्शनों के लिए दूर-दूर से आने लगे। एक दिन कत्थू नँगल नामक
ग्राम का एक किसान भाई सुग्घा जी अपने परिवार सहित आपके दर्शनों को आया उनके साथ
उनका युवा बेटा भी था। जिसको वे लोग प्यार से बूढ़ा-बूढ़ा कहकर पुकारते थे। वह युवक
आपको तरुण अवस्था में अपने गाँव में पहले मिल चुका था। अतः वह आपके दर्शनों के लिए
लालायित रहता था। उसकी यह अभिलाषा कुछ वर्ष बाद पूरी हो रही थी, अतः वह सदा के लिए
आपकी निकटता प्राप्त करके सेवा में रहना चाहता था। इसलिए उसने माता-पिता से आज्ञा
लेकर गुरुदेव की सेवा में रहने की इच्छा व्यक्त की जो कि गुरुदेव ने सहर्ष स्वीकार
कर ली किन्तु कहा– बेटा सोच समझकर निश्चय करना सिक्खी पर चलना सरल नहीं है, सिक्खी
तो खण्डे यानि दो धारी तलवार की धार के समान है, इस पर चलना मृत्यु को स्वीकार करके,
तन-मन-धन सभी कुछ समर्पित करके जीना होता है। एक बार इस मार्ग में प्रवेश लेने के
बाद फिर लौट कर पीछे नहीं देखना होता, भले ही अपने प्राणों की आहुति क्यों न देनी
पड़े। युवक ‘बूढ़ा’ ने तुरन्त दृढ़ निर्णय लेते हुए गुरुदेव के सभी बचन स्वीकार करते
हुए अपनी स्वकृति दे दी कि वह हर क्षण सिक्खी पर न्योछावर होने के लिए तत्पर रहेगा।
उसमें किसी प्रकार का आलस्य नहीं करेगा। इस पर गुरुदेव ने युवक ‘बूढ़ा’ को गले लगाया
और उसे चरणामृत देकर दीक्षित किया। धीरे-धीरे संगत में युवक ‘बूढ़ा’ का नाम भाई
बुड्ढा जी प्रसिद्ध हो गया, जो कि समय के साथ-साथ बाबा बुडढा जी कहलाए।