31. स्यालकोट के व्यापारी मूलचन्द की
मृत्यु
श्री गुरू नानक देव जी ने कुछ दिनों में अनुभव किया कि करतारपुर
नगर बसाने के लिए उसे व्यापारिक केन्द्र बनाना अति आवश्यक है। इसलिए उन्होंने विचार
किया, यदि वहाँ पर कुछ व्यापारियों को आमन्त्रित करके स्थायी रूप में बसा दिया जाए
तथा कुछ कारीगरों द्वारा उद्योग स्थापित किये जाएँ तो करतारपुर में किसी वस्तु का
अभाव न होने के कारण नगर का निर्माण हो जाएगा। अतः आप जी ने निकट के नगर स्यालकोट
से कुछ व्यापारियों को निमन्त्रण देने के विचार से स्वयँ भाई मरदाना जी सहित चले
जाना पसन्द किया। क्योंकि वहाँ पर आपका एक सिक्ख, भाई मूलचन्द रहता था जो कि आपका
परम भक्त होने के साथ एक व्यापारी भी था। गुरुदेव ने भाई मरदाना जी द्वारा उसके घर
सँदेश भेजा कि वह उन्हें मिलने आये। मूलचँद की पत्नी को जब मालूम हुआ कि वही फ़कीर
दोबारा आए हैं जिनके साथ उसका पति घरबार त्यागकर चला गया था तो उसने सोचा यदि इस
बार भी उसका पति उनके साथ चला गया तो उसका क्या होगा। अतः उसने छल से काम लेते हुए
अपने पति को छलचरित्र द्वारा बहला फुसलाकर छिप जाने के लिए विवश कर दिया और झूठ-मूठ
कह दिया कि मूलचन्द घर पर नहीं, कहीं बाहर गए हुए हैं। गुरुदेव को जब यह उत्तर मिला
तो उन्होंने कहा, अच्छा उस की विमुखता उसको घर पर नहीं रहने देगी। कच्चे कोठे में
छिपे होने के कारण मूलचन्द को साँप ने काट लिया। जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई। नगर
वासियों ने गुरुदेव को पहचान लिया और उनका हार्दिक स्वागत किया। गुरुदेव ने
व्यापारियों की एक सभा बुलाई जिसमें सभी को नये नगर करतार पुर में जाकर निवास करने
के लिए निःशुल्क भूमि देने का प्रस्ताव रखा जिसको बहुत से व्यापारियों तथा कारीगरों
ने तुरन्त स्वीकार कर लिया। तभी मूलचन्द की मृत्यु का समाचार गुरुदेव को दिया गया।
तथा विनती की गई कि उसे क्षमा करें। इस पर गुरुदेव ने कहा, ठीक है इसका कल्याण अब
अपने दसवें स्वरूप में करेंगे।