29. चौधरी अजिता जी को उपदेश
श्री गुरू नानक देव जी अपने चौथे प्रचार दौरे से वापस आये, तो
पक्खो ग्राम के चौधरी अजिता से घनिष्ठता बढ़ती गई। समय-समय, अलग-अलग विषयों पर
गुरुदेव का उनके साथ विचार विमर्श होता रहता। वह अपनी शँकाओं का समाधान गुरुदेव से
करवाते रहते। इस प्रकार गुरुदेव की शिक्षा उनके मन को बहुत भाती। एक दिन चौधरी अजिता,
गुरुदेव से विचारविमर्श करते समय पूछने लगा, हे गुरुदेव जी ! इस जीवन को सार्थक करने
के लिए मनुष्य ने कई धर्मों को अपनाया है तथा कई प्रकार की मान्यताओं का प्रचलन किया
है। किन्तु हमें कौनसा मार्ग अपनाना चाहिए ? गुरुदेव ने उत्तर में कहा, धर्म का
मार्ग प्रेम-भक्ति है। वस्तुतः धर्म वही उचित है जिसको प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति
सहज रूप में अपना सके तथा जिसको अपनाने से प्राप्तियाँ अधिक हो और परीश्रम कम करना
पड़े। जनसाधारण को गृहस्थ में समस्त घरेलू कर्त्तव्य निभाते हुए, ध्यान, मन प्रभु
चरणों में रखना चाहिए। इस विधि को ‘सहज योग’ कहते हैं। इसमें मन पर नियन्त्रण रखते
हुए सभी कुछ सँयम से ही करना है किसी बात की अति नहीं करनी। जो भी कार्य प्रकृति के
नियमबद्ध सिद्धाँतों के अनुरूप होगा, उसमें निश्चिय ही सफलता मिलेगी। इसलिए इस
मार्ग को ‘गाड़ी राह’ भी कहते हैं जिस पर हर कोई चल सकता है। इसमें कर्मकाण्डों का
खण्डन करके मन की शुद्धता पर बल दिया गया है। आध्यात्मिक दुनिया में शरीर गौण है।
वहाँ केवल मन ही प्रधान है। मन को जीतने से लक्ष्य तुरन्त प्राप्त होता है। अतः मन
को साधने के लिए सतसँग करना अनिवार्य है। साधसंगत में व्यक्ति अवगुणों का त्यागकर
गुणों को धारण करने का अभ्यास करता है। इस कार्य के लिए उसका मार्गदर्शन महापुरुषों
की बाणी तथा उनका जीवन चरित्र प्रेरणा स्त्रोत होता है। यह सब कुछ जानकर अजिता चौधरी
कहने लगा, गुरुदेव, फिर देरी किस बात की है ? आप यहाँ स्थायी रूप से अपनी देखरेख
में सतसँग मण्डल की स्थापना करें। जिससे जिज्ञासु लाभान्वित हों। गुरुदेव ने उत्तर
दिया, अब हम उस स्थान को बसाने का कार्यक्रम बना रहे हैं जिसे पिता, ससुर मूलचन्द
जी ने कुछ वर्ष पूर्व कृषि कार्यों के लिए खरीदा था। इस पर अजिता विनती करने लगा कि
मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे सबसे पहले गुरू दीक्षा देकर कृतार्थ करें।
गुरुदेव ने उनके हृदय की तीव्र, सच्ची इच्छा को देखकर उनको गुरू दीक्षा देकर सिक्ख
बनाने का वचन दिया।