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25. बाबर का आक्रमण (सैदपुर, ऐमनाबाद-प0 पँजाब)

श्री गुरू नानक देव जी पिशावर नगर से सीधे सैदपुर पहुँचे। उन दिनों अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह, मीर बाबर ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण कर दिया था। गुरुदेव ने अफगानिस्तान में विचरण करते समय यह अनुमान लगा लिया था कि प्रशासन की तरफ से सैनिक गतिविधियाँ तीव्र हो चुकी है। अतः आक्रमण की तैयारियां हो रही हैं। युद्ध से होने वाले परिणामों से आप जी अपने देशवासियों को समय रहते सावधान करना चाहते थे। इसलिए आप अपने प्यारे मित्र भाई लालो जी के यहाँ पधारे। इतने में पेशावर के शासकों, हाकिमों ने बिना युद्ध किये बाबर से पराजय स्वीकार करते हुए सन्धि कर ली। इस प्रकार बाबर विजय के नारे लगाता हुआ, सैदपुर पर आक्रमण करने आ गया। सैदपुर वासियों को जब स्थानीय प्रशासन की तरफ से बाबर के आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए तैयार होने को कहा जाने लगा तो गुरुदेव ने सभी को साँत्वना देने लगे कि समय रहते सावधानीपूर्वक कार्य कर लेने चाहिए जिससे निर्दोष जनसाधारण युद्ध की लपेट में न आये। आपके विचार सुनकर एक व्यक्ति आपके पास आया और बोला, हे गुरुदेव ! मेरे घर में मेरी बिटिया का विवाह निश्चित हो रखा है। मैं क्या करूँ ? गुरुदेव ने तब उसे एक विशेष सुरक्षित स्थान बताया जहां पर सभी साधन उपलब्ध थे तथा कहा, आप वहाँ जाकर विवाह की व्यवस्था करें। बारात को वहीं आमँत्रित करें इसी में सभी का भला है। इस प्रकार गुरुदेव स्वयँ सभी लोगों को जागरुक करने में व्यस्त हो गए और अपनी सुरक्षा करने का ध्यान मन से निकाल दिया। गुरुदेव के कहने पर कुछ लोगों ने सुरक्षित स्थानों में शरण ले ली परन्तु जो लोग युद्ध की विभीषिका से अवगत होना नहीं चाहते थे अथवा धन, यौवन तथा सत्ता के नशे में थे, गुरुदेव की बातों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। बाबर के आक्रमण से बचने के लिए शासक वर्ग अँधविश्वासों के जाल में फँसे होने के कारण ताँत्रिक क्रियाओं में उलझे हुए थे। सैनिकबल का पुनर्गठन करने के स्थान पर उन्होंने मुल्लाओं को कलाम पढ़ने, कुरान का पाठ करने पर लगा दिया ताकि आफत पर विजय प्राप्त की जा सके। सैनिक शक्ति का समय पर नवीनीकरण आधुनिकीकरण न होने के कारण बाबर जल्दी ही विजयी हो गया क्योंकि उसके पास नये समय का तोपखाना इत्यादि अस्त्र-शस्त्र थे। सैदपुर के शासकों ने बाबर का रणक्षेत्र में मुकाबला किया। परन्तु सैनिक सन्तुलन ठीक न होने के कारण पराजित हो गए। जिससे विजयी बाबर की सैनाएँ नगर को धवसत करने में जुट गई। सैनिकों ने अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिये, क्योंकि विजय की मस्ती में बाबर ने अपनी सेना को माले–ए–गनीमत को हथियाने, लूटपाट करने की पूरी छुट्टी दे दी थी। जिससे लूटपाट के साथ-साथ युवतियों के साथ बलात्कार होने लगे। शत्रु-सैनिकों के घरों को आग लगा दी गई और जनसाधारण का अपमान होने लगा। कई निर्दोष मौत के घाट उतार दिये गए। चारों तरफ मृत्यु का ताँडव नाच हो रहा था। बाबर के सैनिकों को मजदूरों की आवश्यकता पड़ी। बाकी बच गये लोगों को बन्दी बना लिया गया। गुरुदेव तथा उनके साथी भाई लालो, भाई मरदाना जी भी इन्हीं बन्दियों में थे। बन्दिओं का कार्य था कि सेना का सामान ढोना तथा उनके भोजन के लिए आटा पीसना। अधेड़ आयु के लोगों को चक्की पीसने के लिए नियुक्त किया गया। भाई मरदाना जी ऐसी परिस्थिति में साँकेतिक दृष्टि से गुरुदेव की तरफ प्रश्न करने लगे। गुरुदेव ने तब उन्हें आदेश दिया कि वे रबाब बजाने का कार्य ही प्रारम्भ करें। जैसे ही भाई जी ने रबाब में सुर-ताल बनाया गुरुदेव उच्चारण करने लगे: 

सोहागणी किआ करम कमाइआ ।। पूरबि लिखिआ फलु पाइआ ।।
नदरि करे कै आपणी आपे लए मिलाइ जीउ ।।
हुकमु जिना नो मनाइआ ।। तिन अंतरि सबदु वसाइआ ।।
सहीआ से सोहागणी जिन सह नालि पिआर जीउ ।।
जिना भाणे का रसु आइआ ।। तिन विचहु भरमु चुकाइआ ।।
नानक सतिगुरु ऐसा जाणीऐ जो सभसै लए मिलाइ जीउ ।।
सिरी राग, अंग 71 

अर्थः जो सोहागणी अर्थात भाग्य वाली हैं उन्होंने कौनसा अच्छा काम किया हुआ है ? उन्होंने पिछले जन्म में की गई नेक कमाई के लिखे सँस्कारों की वजह से अब परमात्मा का नाम फल प्राप्त कर लिया है। परमात्मा अपनी मेहर की निगाह करके आप ही उनको अपने चरणों में मिला लेता है। परमात्मा जिन जीव स्त्रियों को अपना हुक्म मानने के लिए प्रेरित करता है, वो अपने हिरदे में परमात्मा की सिफत सालाह की बाणी यानि परमात्मा की तारीफ की बाणी बसाती हैं। वो ही जीव सहेलियाँ भाग्यशाली होती हैं, जिनका अपने खसम (प्रभू) से प्यार बना रहता है। जिन मनुष्यों को परमात्मा की रजा में, हुक्म में चलने का आनंद आ जाता है, वो अपने अन्दर से माया वाली भटकन दूर कर लेते हैं। पर यह मेहर गुरू की ही होती है। हे नानक ! गुरू ऐसा दयाल है कि वो शरण में आए हुए सभी जीवों को भाव प्रभू चरणों में मिला देता है। गुरुदेव ने जैसे ही ईश्वर इच्छा में जीने मरने का उपदेश गायन किया, सारी की सारी चक्कियाँ अपने आप चलने लग गईँ, सभी बन्दियों के चेहरे सामान्य अवस्था में आ गए। उनके हृदय से भय निकल गया इस मस्ती भरे गान को सुनकर वहाँ पर खड़े सन्तरी आश्चर्य में अपने अधिकारियों को बुला लाए कि एक मस्ताना फ़कीर है जो कि दयनीय परिस्थितियों में भी निर्भय होकर मधुर कँठ से गा रहा है और चक्कियाँ अपने आप चल रही हैं। इस दृश्य को देखकर अधिकारी भयभीत हुए कि कहीं वह कामिल फ़कीर, पूर्ण संत हुआ तो, जोर-जबर के कारण कोई श्राप ही न दे दे। अतः वे सीधे मीर बाबर के पास सूचना देने पहुँचे। सूचना पाते ही बाबर स्वयँ बन्दियों को देखने चला आया। बाबर के साथ आये अहलकारों में से एक ने गुरुदेव को तुरन्त पहचान लिया। उसने बाबर को बताया कि कुछ दिन पहले इस फकीर को काबुल में देखा था। वहाँ के लोग इनकी बहुत मान्यता करने लगे थे। बाबर ने जैसे ही करुणामय वातावरण के स्थान पर हर्ष उल्लाहस का माहौल पाया तो उसे समझने में देरी नहीं लगी कि वह सब उसी फ़कीर की ही देन है। उसने गुरुदेव से अभद्रता, गुस्ताखी की क्षमा याचना की। परन्तु गुरुदेव ने उसे फटकारते हुए कहा, तुम बाबर नहीं ज़ाबर हो। पापियों की बारात लेकर आए हो। तुमने निर्दोष लोगों की हत्याएँ करवाई है तथा महिलाओं के शील भँग करवाए हैं। यदि शासकों को दण्डित किया होता तो हमें कोई रोष नहीं था परन्तु तुमने बिना कारण विध्वँसक कारवाइयों से जनसाधारण को बेघर कर दिया है। जिसका अल्लाह की दरगाह में तुम्हें हिसाब देना होगा। इस कड़वे सत्य को सुनकर बाबर का सिर शर्म से झूक गया। उसने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा, हे फ़कीर साईं ! आप मेरा मार्गदर्शन करें। इस पर गुरुदेव ने कहा, जो शासक अपनी प्रजा के साथ न्याय नहीं करते। इसके विपरीत प्रजा का भ्रष्टाचार तथा क्रूरता से शोषण करते हैं वह बहुत जल्दी समाप्त हो जाते हैं। प्रकृति का ऐसा ही नियम है। यदि चिरस्थाई रहना चाहते हो तो दयावान बनकर सदैव न्याय, इन्साफ का तराजू हाथ में रखो। बाबर ने तुरन्त गुरुदेव के चरण स्पर्श करते हुए शपथ ली, आइन्दा कभी भी मेरे सैनिक जनसाधारण पर अत्याचार नहीं करेंगे। मैं आपकी शिक्षा धारण करते हुए घोषणा करता हूँ कि नगर में अमन बहाल तुरन्त कर दूँगा। यदि आप की आज्ञा हो तो इस नगर का नाम भी सैदपुर से अमन-आबाद रख देता है। इस बात के लिए गुरुदेव ने तुरन्त स्वीकृति प्रदान कर दी। बाबा और बाबर में सन्धि हो गई। बाबर ने गुरुदेव से कहा, अब मेरे लिए आप कोई हुक्म करें मैं आप का सेवादार हूँ। इस पर गुरुदेव ने कहा, सभी बन्दियों को आदर सहित रिहा कर दो। बाबर ने कहा ऐसा ही होगा परन्तु आप भी मुझसे कुछ धन सम्पति ले लें। उत्तर में गुरुदेव ने कहा: 

मानुख की जो लेवै ओटु ।। दीन दुनी मै ताकउ तोटु ।।
कहि नानक सुण बाबर मीर ।। तैथों मंगे सो अहमक फ़कीर ।।
जन्म साखी 

अर्थः मैं बन्दों से नहीं खुदा से माँगता हूँ, मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए जो भी चाहिए जनता के लिए अथवा परोपकार के लिए चाहिए।

नोटः सैदपुर नगर का नाम धीरे-धीरे, बाद में ऐमनाबाद हो गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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