22. पीर रोशन जमीर (काबुल नगर,
अफ़ग़ानिस्तान)
श्री गुरू नानक देव जी कँधार नगर से अफगानिस्तान की राजधनी
काबुल में पहुँचे। वहाँ के निवासियों में से कुछ एक जो बल्लख नगर के मेले में आपके
दर्शन कर के लोटे थे, उन्होंने आपका पीर–ए–हिन्द हजरत बाबा नानक कहकर भव्य स्वागत
किया। आपका कलाम जिन्होंने भी सुना वे आप के होकर रह गएः
माइया मोहि सगल जगु छाइआ ।। कामणि देखि कामि लोभाइआ ।।
सुति कंचन सिउ हेतु वधाइआ ।। सभु किछु अपना इकु रामु पराइआ ।।
ऐसा जापु जपउ जपमाली ।। दुख सुख परहरि भगति निराली ।। रहाउ ।।
राग प्रभाती, अंग 1342
अर्थः सारे जहान में सँसारी पदार्थों की ममता फैली हुई है।
सुन्दर नारी को देखकर मनुष्य विषय विकार के असर के नीचे आ जाता है। अपने पुत्रों और
स्वर्ण आदि से जीव अपना प्यार बढ़ा लेता है। इन्सान परमात्मा को छोड़कर सभी को अपना
कहता है। हे माला के साथ जाप करने वाले अब ऐसे जाप को जपो। दुख खुख त्यागकर निराली
यानि निष्काम भक्ति करो। आप जी ने अपने प्रवचनों में जनसाधारण को सम्बोधन करते हुए
कहा, लोग अपना मुख्य लक्ष्य भूल गए हैं अतः साँसारिक कार्यों में ही खोकर रह गए
हैं। जबकि उनका यहाँ पर आने का मुख्य प्रयोजन अपनी आत्मा की खोज करना था। इस कार्य
के लिए एक मात्र साधन प्रभु के नाम का चिंतन मनन करना ही है। आपकी स्तुति सुनकर वहाँ
के स्थानीय पीर रोशन ज़मीर आपसे मिलने आए। उन्होंने आपसे विवेचन किया। आपके
युक्तिसँगत विचारों से वह बहुत प्रभावित हुए। अतः आपसे पूछा, सफलता की कुँजी क्या
है ? आप जी ने उत्तर में कहा, ‘अपने मन पर नियन्त्रण रखो यही सफलता की कुंजी है’:
मनि जीतै जगु जीतु ।। ‘जपुजी साहिब’, अंग 6
अर्थात जो व्यक्ति मन पर नियन्त्रण करने में सफल हो जाता है वह
समस्त विश्व को अपने आचरण से विजय कर सकता है। आप जी, संगत के स्नेह में बँधे हुए,
वहाँ पर बहुत दिन ठहरे। कई भक्तों ने तो आपकी बाणी अपने पास सँग्रह कर ली। इस अवधि
में आप जी ने वहाँ पर सतसँग की स्थापना करवाई जिसमें प्रतिदिन प्रातःकाल हरियश होने
लगा। आप वहाँ से जब विदायगी चाहने लगे तो पीर रोशन जमीर कहने लगा, मैं आपके दीदार
के बिना नहीं रह पाऊँगा। इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा, आप हर रोज सुबह सतसंगत में
हमारे दीदार हमारी बाणी उच्चारण करते समय कर सकते हैं। अर्थात हमारी बाणी ही हमारे
दर्शन–ऐ–दिदारे हैं।