21. दीर्घ आयु महत्त्वहीन (कँधार नगर,
अफ़ग़ानिस्तान)
श्री गुरू नानक देव जी बल्लख नगर से अफ़ग़ानिस्तान में दक्षिण
क्षेत्र की तरफ चल पड़े। इस देश के दक्षिणी क्षेत्र में कँधार नामक बहुत प्रसिद्ध
व्यापारिक केन्द्र है। वहाँ पर बहुत दीर्घ आयु के एक फ़कीर यार अली खान की खानकाह
यानि आश्रम था। उसको अपनी आयु अधिक होने पर बहुत गर्व था। इसलिए जनता भी बहुत
मान्यता देती थी। गुरुदेव जी को जब उनकी आयु के अधिक होने का एहसास कराया गया तो
गुरुदेव जी कहने लगे:
बहुता जीवणु मंगीऐ मुआ न लोड़ै कोइ ।।
सुख जीवनु तिसु आखीऐ जिसु गुरमुखि वसिआ सोइ ।।
राग सिरी राग, अंग 63
फ़कीर अली खान को जब बताया गया कि एक फ़कीर आए हैं जो कि दीर्घ आयु
को कोई महत्व नहीं देते तो वह गुरुदेव से मिलने आया। गुरुदेव ने उन्हें समझाते हुए
कहा, प्राणी को इस काया से मोह नहीं करना चाहिए क्योंकि वास्तव में यह मिट्टी है।
यदि इस के मोह जाल में बँधे रहे तो फिर, बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। अतः सभी प्रकार
के बन्धन तोड़कर जीवन मुक्त हो जाना चाहिए। खुदा के दर पर तब ही स्वीकार्य होंगे।
जीवन मुकतु सो आखीऐ जिसु विचहु हउमै जाइ ।।
धंधै धावत जगु बाधिआ ना बुझै वीचारु ।।
जंमण मरणु विसारिआ मनमुख मुगधु गवारु ।।
गुरि राखे से उबरे सचा सबदु वीचारि ।। राग मारू, अंग 1010
गुरुदेव ने उन्हें बताया कि मृत्यु को सदैव ध्यान में रखकर जीवन
यात्रा करनी चाहिए जिस से अभिमान निकट नहीं आये। अभिमान, किसी प्रकार का भी हो,
बन्धन है। जिसको तोड़ना अनिवार्य है नहीं तो आवागमन के चक्र से बच नहीं सकते। इसलिए
गुरू के शब्दों की कमाई करनी चाहिए अर्थात गुरू उपदेशों पर ध्यान केन्द्रित करते
हुए माया के बन्धनों से छुटकारा प्राप्त करना चाहिए। वह शिक्षा धारणकर, अली यार ख़ान
ने गुरू चरणों में नमस्कार कर दी और कहने लगा, मैं आप का आभारी हूँ, जो आपने समय
रहते मेरा मार्गदर्शन किया है।