18. साधसंगत का महत्त्व (ताशकँद नगर,
उजबेगीस्तान)
श्री गुरू नानक देव जी बुखारा नगर से उजबेगीस्तान की राजधनी
ताशकँद पहुँचे। यह नगर साधरणतः शीतल जलवायु वाला क्षेत्र है। जनसाधारण ने आपका
पहनावा देखकर आपको हाजी समझा। इस कारण बहुत से लोग आपको मिलने चले आए, परन्तु जब
उनको मालूम हुआ कि आप निर्पेक्ष विचारधारा वाले फ़कीर हैं तो आपकी विचारधारा को जानने
की लोगों को उत्सुकता हुई। आपने समस्त जन समूह को उज्ज्वल जीवन जीने के लिए साधसंगत
करने की प्रेरणा दी। इस पर एक जिज्ञासु ने आपसे प्रश्न किया कि भक्तजनों के दर्शन
अथवा सतसंगत में जाने का क्या महत्व है ? गुरुदेव जी ने उत्तर में कहा:
ऐ जी सदा दइआल दइआ करि रविआ गुरमति भ्रमनि चुकाई ।।
पारसु भेटि कंचनु धातु होई सतिसंगति की वडिआई ।।
हरि जलु निरमलु मनु इसनानी मजनु सतिगुरु भाई ।।
पुनरपि जनमु नाही जन संगति जोति जोत मिलाई ।।
राग गूजरी, पृष्ठ 505
अर्थ: जिस प्रकार साधारण धातु पारस पत्थर के स्पर्श मात्र से
सोना हो जाती है ठीक उसी प्रकार नास्तिक व्यक्ति सतसंग में आने से आस्तिक बनकर
विवेकशील एवँ चरित्रवान मनुष्य बन जाता है। संगत में हरियश करने-सुनने से पुनः जन्म
नहीं लेना पड़ता अर्थात आवागमन मिट जाता है। प्राणी लीन अवस्था में प्रभु चरणों में
समा जाता है। यहाँ पर गुरुदेव सतसँग की स्थापना करवाकर वापस लौटने के लिए समरकँद की
ओर चल पड़े।