17. प्रार्थना ही फलदायक (बुख़ारा नगर,
तुर्कमानिस्तान)
श्री गुरू नानक देव जी मशहद नगर से ईरान सीमा पार करके
तुर्कमानिस्तान क्षेत्र में प्रवेश करके वहाँ के एक प्रमुख नगर बुख़ारा में पहुँचे
जो कि नदी के किनारे बसा हुआ है। यह नगर उस क्षेत्र का बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र
होने के कारण धनी जनसँख्या वाला है। गुरुदेव के वहाँ पहुँचने पर उनका मधुर कीर्तन
सुनने जनता उमड़ पड़ी। उन दिनों वहाँ पर बौद्ध तथा इस्लाम धर्म की मिली जुली सभ्यता
थी। इसलिए किसी विवाद की कोई सम्भावना तो थी नहीं। जनता ने आपका भव्य स्वागत किया
और आपके प्रवचन ध्यान से सुने। आप ने कहा:
बाबा अलहु अगम अपारु ।।
पाकी नाई पाक थाइ सचा परवदिगारु ।। राहउ ।।
तेरा हुक्मु न जापी केतड़ा लिखि न जाणै कोइ ।।
जे सउ साइर मेलीअहि तिलु न पुजावहि रोइ ।।
कीमति किनै न पाइआ सभि सुणि सुणि आखहि सोइ ।।
राग सिरी, अंग 53
अर्थ: परमेश्वर की महिमा अवर्णनीय है। वह पवित्र तथा स्थायी है।
उसके आदेशों को जान लेना मुश्किल और लिख लेना तो दूर की बात है। भले ही सैकड़ों
विद्वान इकट्ठे हो जाएँ वे उसकी महिमा का भेद कणमात्र भी नहीं जान सकते। वस्तुतः जो
भी सुना पढ़ा जा रहा है। वह सब एक दूसरे का अलग-अलग अनुभव मात्र ही है। जनसाधारण ने
गुरू जी के प्रवचनों में बहुत रुचि दिखाई। जिससे अपार भीड़ आपके प्रवचन सुनने के लिए
आने लगी। जनता में से किसानों ने आपसे विनती की, हे वली–ए–हिन्द ! अल्लाह की दरगाह
में दरखासत करें कि बारिश हो, काफी दिनों से सूखा पड़ा हुआ है। गुरुदेव ने इस पर,
समस्त किसानों को प्रभु के सम्मुख प्रार्थना करने को कहा। किसानों ने गुरुदेव जी के
आदेश अनुसार इकट्ठे होकर प्रार्थना प्रारम्भ कर दी। हरि-इच्छा से प्रार्थना
सम्पूर्ण होने पर धीमी-धीमी वर्षा आरम्भ हो गई जिससे सभी किसान हरियश करते हुए
हर्षोउल्लास से घरों को लौट गए।