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16. मुहम्मद साहब और अली एक सम (मशहद नगर, ईरान)

श्री गुरू नानक देव जी तहरान से प्रस्थान कर मशहद नगर पहुँचे। यह नगर ईरान में तुर्कमानिस्तान की सीमा के निकट स्थित है। वहाँ पर शीया समुदाय के एक पीर खलीफा हारुन अल रसीद का मकबरा है। जिसकी ज़ियारत करने उनके अनुयायी दूर-दूर से आते थे। गुरुदेव जब वहाँ पहुँचे तो वार्षिक उर्स चल रहा था अतः मेला लगा हुआ था। गुरुदेव जी की मनमोहक बाणी सुनकर, उनके निकट बहुत बड़ी सँख्या में लोग इकट्ठे हो गए। कुछ एक कट्टरपँथियों को यह बात शरहा के विरुद्ध मालूम हुई, इसी कारण पीर जी के उत्तराधिकारी ने आपसे भेंट की और भाँति-भाँति के प्रश्न करने लगा। उसका मुख्य प्रश्न था: कि आपको हज़रत मुहम्मद साहब तथा अली साहब में क्या अंतर दिखाई देता है ? गुरुदेव ने उत्तर में कहा: शस्त्र विद्या तथा वीरता की दृष्टि से अली साहब बड़े है और आत्मिक ज्ञान तथा शिक्षा की दृष्टि से मुहम्मद साहब बड़े है किन्तु सूझ-बूझ में दोनों एक समान हैं। इस उत्तर से मकबरा अधिकारी सन्तुष्ट हो गया और गुरुदेव का वह अदब करने लगा। इस बात को देखकर जन-साधारण तो कीर्तन श्रवण करने उमड़ पड़ा। गुरुदेव ने तब बाणी उच्चारण की:

मुसलमान कहावणु मुसकलु जा होइ ता मुसलमानु कहाए ।।
अवलि अउलि दीन करि मिठा मसकल माना मालु मुसावै ।।
होइ मुसलमु दीन मुहाणै मरण जीवण का भरमु चुकावे ।।
रब की रजाइ मनै सिर उपर करता मंनै आपु गवावै ।।
तउ नानक सरब जीआ मिहरमति होवै ता मुसलमान कहावै ।।
राग माझ, अंग 141 

अर्थः असल मुस्लमान कहलवाना बहुत कठिन है। अगर इस प्रकार का बने, तो मनुष्य अपने आपको मुस्लमान बुलवाएः असली मुस्लमान बनने के लिए सबसे पहले यह जरूरी है कि मजहब प्यारा लगे। फिर जिस प्रकार जंग उतारने वाले हथियार (मसकल) से जंग निकाला जाता है। इसी प्रकार अपनी कमाई का धन जरूरतमंदों को दे और इस प्रकार दौलत का अहँकार दूर करे। मजहब की अगुवाई में चलकर मुस्लमान बने और सारी उम्र की भटकना खत्म कर दे। भाव सारी उम्र मजहब के बताए राह से अलग ना जाए। अल्लाह द्वारा किए गए को सिर माथे पर माने। कादिर को ही सब कुछ करने वाला माने और खुदी मिटा दे, यानि अहं भाव मिटा दे। इस प्रकार हे नानक ! परमात्मा के पैदा किए गए सारे बंदों से प्यार करे, इस प्रकार का बने तो, मुस्लमान कहलवाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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