14. खुदा का बन्दा हूं बन्दगी मेरा
काम (तहरान नगर, ईरान)
श्री गुरू नानक देव जी बगदाद नगर, ईराक से ईरान की राजधनी तहरान
पहुँचे। ईरान में अधिकाँश लोग शीया सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते थे। गुरुदेव की बाणी
तथा उनके व्यक्तित्व से वे लोग बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने गुरुदेव से पूछा, आप
किस मत के फ़कीर हैं ? गुरुदेव जी ने उत्तर में कहा मैं, किसी विशेष मत का धारक नहीं
हूँ। मैं तो खुदा का बन्दा हूँ। बन्दगी करना मेरा काम है। इसलिए मैं इन चक्करों में
नहीं पड़ता। वहाँ के निवासी इस उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुए। गुरुदेव से उन्होंने फिर
से पूछा, क्या आप हज़रत रसूल अल्लाह मुहम्मद साहब तथा हज़रत अली पर इमान लाते हैं ?
गुरुदेव ने इस पर उत्तर दिया। हज़रत मुहम्मद तो एक पैगम्बर थे, पैगम्बर का तात्पर्य
है कि खुदा का सँदेश जनता तक पहुँचाने वाला व्यक्ति अतः वे अल्लाह से सँदेश लेकर आए
थे। वास्तव में सँदेश वाहक के द्वारा लाया गया सँदेश ही महत्व रखता है न कि
सँदेश-वाहक। अतः हम भी उनके सँदेश का पूर्णरूप से पालन करको अल्लाह के फरमानों पर
जीवन व्यतीत करते हुए प्रत्येक क्षण आराधना में लीन रहने का प्रयत्न करते हैं।
लेकिन कुछ कट्टरपंथियों को यह उत्तर उचित नहीं जान पड़ा। वे कहने लगे, आप हमारे पीर
अब्दुल रहमान साहब के पास चलें, वह इस बात का निर्णय करेंगे। उनके साथ विचार विमर्श
में गुरुदेव ने कहा, खुदा का नूर समस्त प्राणी मात्र में है। इसी प्रकार उसका नूर
पैगम्बरों में भी हैं अतः सभी पैगम्बर एक समान हैं। इस उत्तर को सुनकर पीर अब्दुल
रहमान ने अपने अनुयाइयों से कहा, यह अल्मस्त फ़कीर है आप लोग इनसे विवाद न करें। यह
जो कहते हैं सब ठीक है क्योंकि यह अल्लाह की इबादत करते-करते उस जैसे ही हो चुके
हैं। ठीक उसी प्रकार जिस तरह नदियाँ सागर में विलीन हो जाती हैं और अपना अस्तित्व
खो देती हैं। अब इनका भी अपना कोई अस्तित्व नहीं जिसकी वह पहचान कराएँ।