12. चिंतन मनन आवश्यक (येरुश्लम नगर,
इज़राईल)
श्री गुरू नानक देव जी काहिरा, मिश्र से येरुश्लम नगर में पहुँचे।
यह नगर यहूदी, इस्लाम और ईसाई संस्कृति का मिलाजुला केन्द्र है। गुरुदेव को वहाँ
किसी प्रकार के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। अतः आपके कीर्तन को श्रवण करने के
लिए बहुत से सँगीत प्रेमी एकत्रित हुए। आप जी शब्द गायन कर रहे थे:
जेते जीअ तेते सभि तेरे विणु सेवा फलु किसै नाही ।।
दुखु सुखु भाणा तेरा होवै विणु नावै जीउ रहै नाही ।।
राग आसा, अंग 354
अर्थः जितने भी प्राणी हैं, सभी तेरे ही हैं, सेवा के बिना किसी
को भी फल प्राप्त नहीं होता। सुख और दुख तेरी रजा में तेरे हुक्म के अन्दर है। नाम
के बिना जीवन नहीं रहता। भाव जो नाम नहीं जपता उसका क्या आत्मिक जीवन और क्या
आत्मिक दृष्टि। ईसा मसीह का जन्म स्थल होने के कारण उनके अनुयाइयों द्वारा आप जी का
अतिथि सत्कार करते हुए भव्य स्वागत किया गया। तदपश्चात् परस्पर प्रेम-प्यार की
भावनाओं को बढ़ावा देने के लिए विचारों का आदान-प्रदान किया गया। इस गोष्ठी में
गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कहा– प्रेम का मार्ग ही कल्याणकारी है। जो लोग प्रेम,
सेवा तथा प्रार्थना में विश्वास करते हैं, वे प्रभु की निकटता प्राप्त कर लेते हैं।
यही सिद्धाँत सर्वमान्य सत्य हैं। जहां सत्य का वास होगा, वहाँ यह तीनों सिद्धाँत
प्रधान होकर दृष्टिगोचर होंगे। सिद्धाँत तो केवल मानव हृदय की शुद्धि करके उसे
परमतत्व को प्राप्त करने के लिए तैयार करते हैं। वास्तव में परमतत्व को प्राप्त करने
के लिए तो भजन अर्थात चिँतन करना अति आवश्यक है अन्यथा परमतत्व की प्राप्ति सम्भव
नहीं, जो कि मनुष्य योनि का मूल लक्ष्य है।