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10. गोष्ठी-इमाम अब्दुल रहमान (मदीना नगर, अरब देश)

श्री गुरू नानक देव जी मक्का नगर से प्रस्थान करके मदीना पहुँचे। वहाँ पर आपके आगमन की प्रतीक्षा बड़े उत्साह के साथ पहले से हो रही थी। क्योंकि इमाम रुकनदीन आपका श्रद्धालू जो हो गया था, आपका वहाँ पर भव्य स्वागत किया गया तथा दार्शनिक विचारविमर्श के लिए विशेष गोष्ठिओं का आयोजन किया गया। इस्लाम के जो जो विचारों तथा सिद्धाँतों से आपका मतभेद था आपने उनके प्रति बिना किसी भय या झिझक के आलोचना की और अपने विचार व्यक्त करते हुए सत्यमार्ग का प्रर्दशन किया। उस गोष्ठी में बहुत से विद्धानों ने भाग लिया। जिसमें इमाम अब्दुल रहमान बगदादी, इमाम आजम, इमाम जाफ्रफर इत्यादि प्रमुख थे। गोष्ठी में पहला प्रश्न था: शैतान इबादत में खलल या बाधा डालता है और बन्दे को बन्दगी नहीं करने देता। गुरु जी ने उत्तर में कहा: जब खुदा एक है, उसका प्रतिद्वन्दी, शरीक है ही नहीं तो वह शैतान कहाँ से आ गया ? वास्तव में मन की दो अवस्थाएँ होती हैं, पहली-सुमति और दूसरी कुमति। व्यक्ति को समस्त परीश्रम मन को साधने में ही लगाना है जिससे कुमति पर नियन्त्रण करके सुमति को बढ़ावा दिया जा सके। बस यही फ़कीरी है। इमाम-लोगों का कहना था: खुदा ने चार पुस्तकें 'जम्बूर', 'तेरेत', 'अंजील', 'कुरान' उपहार स्वरूप भेंट की है तथा चार पैगम्बर भेजे हैं—दाऊद, मूसा, ईसा तथा मुहम्मद साहब। उत्तर में गुरुदेव ने कहा: कि खुदा अनंत काल से है। न जाने उसके यहाँ से कितने पैगम्बर आ चुके हैं तथा कितनी पुस्तकों की उत्पत्ति हो चुकी है। इसीलिए भविष्य में न जाने कितनी पुस्तकें तथा कितने पैगम्बर आते रहेंगे। उस विशाल स्वामी का कोई अन्त नहीं। वह किसी से भी मतभेद नहीं करता क्योंकि सब उसी की संतानें हैं। उस प्रभु में यदि कोई अभेद होना चाहता है तो उसे जान लेना चाहिए कि खुदा की दृष्टि में सब एक समान हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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