8. काल्पनिक देवताओं की पूजा वर्जित (बिलासपुर,
हिमाचल प्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी रवालसर से होकर बिलासपुर पहुँचे। बहुत से
यात्री आपकी ज्ञान चर्चा सुनने के लिए साथ हो लिए थे। अतः उन्होंने गुरुदेव से
आग्रह किया, आप हमारे यहाँ जागृति लाने के लिए अपनी विचारधारा जनसाधारण के सामने रखें।
जिससे समाज में अँधविश्वास के स्थान पर सत्य का प्रकाश हो। गुरुदेव ने उनका अनुरोध
स्वीकार कर लिया। इस प्रकार गुरू जी उनके साथ बिलासपुर के एक मन्दिर के परिसर में
पहुँचे जहाँ पर काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा होती थी। गुरुदेव ने मन्दिर के
प्रागँण में सुबह-शाम अपने नित्यकर्म अनुसार निराकार ज्योति स्वरूप प्रभु की महिमा
में कीर्तन प्रारम्भ कर दिया जिससे आपकी चर्चा घर-घर होने लगी। वहाँ का स्थानीय
नरेश भी हरियश की स्तुति सुनकर आपके दर्शनों को आया। जब उसे मालूम हुआ कि गुरू जी
केवल निराकार उपासना में विश्वास रखते हैं तो वह परेशान हो उठा। देवी-देवताओं का
खण्डन वह किसी प्रकार भी सुनना नहीं चाहता था। उसने अपने तथा कथित विद्वानों को
विचार गोष्ठी के लिए तुरन्त बुला भेजा। ज्ञान चर्चा प्रारम्भ हुई। उन पंडितों तथा
पुजारियों ने गुरुदेव से अनेक प्रश्न किये। जिसके उत्तर में गुरुदेव ने बाणी
उच्चारण की:
जिनी नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई ।।
मूलु छोडि डाली लगे किआ पावहि छाई ।। 1 ।।
बिनु नावै किउ छूटीऐ जे जाणै कोई ।।
गुरमुखि होइ त छूटीऐ मनमुखि पति खोई ।। रहाउ ।।
जिनी एको सेविआ पूरी मति भाई ।।
आदि जुगादि निरंजना जन हरि सरणाई ।। 2 ।।
साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई ।।
किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई ।। 3 ।।
गुर बिनु किनै न पाइओ केती कहै कहाए ।।
आपि दिखावै वाटड़ी सची भगति द्रिड़ाए ।। 4 ।। राग आसा, अंग 420
अर्थ: जो लोग निराकार प्रभु, दिव्य ज्योति की उपासना त्यागकर
काल्पनिक देवी देवताओं की उपासना का आडम्बर रचते है, वह कार्य ऐसा ही है जैसे कोई
अल्पज्ञ व्यक्ति पौधे की जड़ को न सींचकर डालियों को सींचता है। वास्तविकता यह है कि
हरि नाम स्मरण के बिना आवागमन के चक्कर से छुटकारा नहीं मिल सकता, भले ही कोई
व्यक्ति जीवन भर कर्मकाण्ड करता रहे। मुक्ति का एक मात्र साधन, अँधविश्वास का त्याग
करके विवेक बुद्धि से, बिना कर्मकाण्ड, बिना आडम्बर रचे, रोम-रोम में रमे राम का
चिन्तन-मनन करने में है। यही गुरमुख के लक्षण हैं, इसके विपरीत मनमानी करने वाला
अपना आत्म गौरव तथा मान-सम्मान खो देता है। इस प्रकार सभी सन्तुष्ट हो गये।