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7. रूप-यौवन के अभिमान त्यागें (रवालसर, हिमाचल प्रदेश)

श्री गुरू नानक देव जी मण्डी से रवालसर पहुँचे। बहुत से भक्तजन आपके साथ हो लिए थे। आपके कीर्तन तथा प्रवचनों से वे लोग इतने प्रभावित हुए कि गुरू दीक्षा की विनती करने लगे थे। वहाँ के सरोवर में, जो कि प्रकृति द्वारा निर्मित है, आपने उसमें एक विशेष प्रकार के खोखले पत्थर तैरते हुए देखे। और उस सरोवर के किनारे एक रमणीक स्थल पर आप विराजमान होकर, हरियश करने लगे। आपकी कीर्ति कुछ दिनों में ही घर-घर पहुँच गई। जिसको सुनकर कुछ महिलाएँ आपके पास आईं। और उनमें से एक ने आपके पास विनती की, हे गुरुदेव ! मेरा मार्ग दर्शन करें। मेरे पति मुझसे प्रेम नहीं करते, मैं किसी विधि से भी उनका प्रेम प्राप्त करना चाहती हूँ। उसके प्रश्न के उत्तर में गुरुदेव ने उसके व्यवहार के विषय में उसी से जानकारी प्राप्त कर कहा, हे भोली बहन ! तुम अपने व्यवहार में परिवर्तन लाओ। सबसे पहले अपने रूप-यौवन का अभिमान त्यागकर, हृदय में नम्रता धारण करो। दूसरा अपनी बाणी में मीठापन लाकर, सेवा भाव से पति का मन जीतो। इस कार्य के लिए अन्य ऐसी स्त्री को अपनी प्रेरणा बनाओ जो अपने पति का प्रेम पाकर सन्तुष्ट हो। तातर्पय यह कि उस महिला की पति के प्रति गतिविधियों पर ध्यान दो। जिससे तुम्हें भी अपने व्यवहार की प्रतिक्रिया का ज्ञान हो सके। इस तरह तुलनात्मक अध्ययन से तुम बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकती हो, और फिर उसको व्यवहार में लाने से तुम्हारे कष्ट स्वयँ समाप्त हो जाएँगे:

जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ।।
जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ।।
जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ।।
सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ।।
ऐव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाइऐ ।। 3 ।।
राग तलिंग, अंग 722 

यह उपदेश सुनकर वह महिला कहने लगी, मैं तो अपनी ओर से पति को प्रसन्न करने के लिए सभी प्रकार के हार-श्रँगार करती हूँ और वह सभी बातें करती हूँ जिससे पुरुषों को आकर्षित किया जा सके। उस महिला की चतुर बातें सुनकर गुरुदेव कह उठे:

गली असी चंगीआ आचारी बुरीआह ।।
मनहु कुसुध कालीआ बाहरि चिटवीआह ।।
रीसा करिह तिनाड़ीआ जो सेवहि दरु खड़ीआह ।। राग सिरी राग, अंग 85

अर्थः बातें करने में तो हम सब ही भले हैं किन्तु असल में, किन्तु आचार में और अमल करने में बूरे। मन में हम मलीन हैं किन्तु बाहर से सफेद दिखते हैं। हम उनकी बराबरी करती हैं जो साहिब के दर पर यानि परमात्मा के दर पर खड़ी सेवा या टहल कमाती हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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