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41. बेबे नानकी जी का देहान्त (सुलतानपुर, पँजाब)

उन्हीं दिनों गुरुदेव को सुलतानपुर लोधी से सँदेश प्राप्त हुआ कि बेबे नानकी जी का स्वास्थ्य बहुत दिनों से अच्छा नहीं रहता। वह उनको बहुत याद करती है उनकी ओर से बिनती है कि वे उनसे मिलें। इस सँदेश को पाकर गुरुदेव जी भाई मरदाना सहित सुलतानपुर पहुँचे। बहन जी वहाँ पर आपकी राह देख रही थी वह दर्शन करके गदगद हो गई और उन्होंने कहा, भैया जी अब मेरा अन्तिम समय निकट आ गया है। मैं चाहती हूँ कि मेरे प्राण आप की छत्र छाया में निकलें, जिससे मेरी अन्तेष्टि आप कर सकें। गुरुदेव ने उन्हें साँत्वना दी और कहा, सब कुछ अकालपुरुष की इच्छा अनुसार उचित ही होगा, आप चिन्ता न करें। और दूसरे दिन बेबे नानकी जी ने नाशवान शरीर त्याग दिया। जिससे उनकी इच्छा अनुसार गुरुदेव ने उनका अन्तिम संस्कार किया। भाई जयराम जी वियोग न सहन कर पाए। वह भी दो दिन बाद ही शरीर का त्याग गये। इस प्रकार गुरुदेव ने भाई जयराम जी की भी अन्तेष्टि क्रिया स्वयँ कर दी। इस कार्य से निवृत होकर गुरुदेव अपने माता-पिता को मिलने राय भोए की तलवण्डी चल पड़े। तब आपसे मूलचन्द नामक एक शिष्य ने अपने घर लौटने की इच्छा प्रकट की जो कि स्यालकोट से आपके साथ रहने का हठ करके आया था। गुरुदेव ने उसे तुरन्त आज्ञा दे दी तथा कुछ आवश्यकता अनुसार धन देकर विदा किया। जब आप तलवण्डी पहुँचे तो वहाँ के निवासियों ने आपका स्वागत किया। परन्तु बहन ‘नानकी जी तथा भाई जयराम जी’ के देहान्त के बारे सुनकर सभी लोग आपके पास शोक प्रकट करने आये। गुरुदेव ने सभी को प्रभु इच्छा में सहज जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा अपने माता-पिता को धैर्य बँधाया और कहा, प्रभु लीला में सदैव प्रसन्न चित रहना चाहिए। आप जी कुछ दिन वहीं ठहरे रहे और फिर वहीं से पश्चिम की यात्रा पर निकल पड़े।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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