4. ज्योति स्वरूप प्रभु का अनुभव (कुल्लू
नगर, हिमाचल प्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी बैजनाथ से कुल्लू नगर में पहुँचे। वहाँ
एक पर्वत के शिखर पर शिव मन्दिर है जिसे स्थानीय जनता बिजलियाँ महांदेव के नाम से
पुकारते हैं। किंवदन्तियों के अनुसार इस स्थान पर, प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में
आकाशीय बिजली गिरती है, जिससे मन्दिर का कलश चार भागों में विभक्त हो जाता है, जिसे
पुजारी कपिल गाय के दूध से धुलाई करते हैं तो वह पुनः जुड़ जाता है। तथा वहाँ पर
कुआरी योगिनी, अदृश्य आत्माओं के रूप में तपस्या में लीन है इत्यादि। गुरुदेव जी,
वहाँ की स्थानीय मान्यताओं से सहमत नहीं हुए। सत्य मार्ग की प्राप्ति के लिए
उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, यदि आप चाहते हैं कि आपका कल्याण हो तो
अपने हृदय रूपी मन्दिर में ज्योति स्वरूप परम शक्ति की याद सदैव बसानी चाहिए। बस यही
एक मात्र सहज सरल उपाय है:
दरसन की पिआस जिसु नर होइ ।। एकतु राचै परहरि दोइ ।।
दूरि दरदु मथि अंम्रितु खाइ ।। गुरमुखि बूझै एक समाइ ।।
तेरे दरसन कउ केती बिललाइ ।।
विरला को चीनसि गुर सबदि मिलाइ ।। 1 ।। रहाउ ।।
राग बसंत, अंग 1188
गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कहा, हे सत्य पुरुषो ! यदि कोई
विवेक बुद्धि से सत्य को जानने का प्रयत्न करेगा तो वह अपने अंतःकर्ण (अर्न्तआत्मा)
में गुरू की शिक्षा द्वारा झाँककर उस के अस्तित्व को अनुभव कर सकता है। शर्त यही है
कि हृदय में दर्शनों की सच्ची लगन होनी चाहिए। पाखण्ड या कर्म काण्डों के जँजालों
से कुछ भी प्राप्ति नहीं होगी।