35. साधु केर भाग (गुजरात नगर प0
पँजाब)
श्री गुरू नानक देव जी जिला जेहलम से आगे बढ़े और गुजरात नगर में
पहुँच गये। वहाँ पर जयसुख नामक गाँव में एक साधु रहता था जिसका नाम केरभाग था। साधना
करने पर उस को कुछ सिद्धि की प्राप्ति हो गई, जिससे वह जनसाधारण पर अपना प्रभाव
स्थापित करने के लिए, अपना चमत्कारी रूप दिखाता था। जिससे वहाँ पर उनकी बहुत मान्यता
होने लगी थी। वह कभी-कभी किसी व्यक्ति विशेष पर प्रकोप के कारण, उसे भस्म कर देने
की धमकी भी देता था, अन्यथा अनिष्ट करके उसे हानि भी पहुँचाता था। इस कारण पूरे
क्षेत्र में जनता उसके भय से सहमी हुई थी कि साधु केरभाग, कहीं नाराज न हो जाये।
इसलिए अधिकाँश लोग उसको खुश करने के लिए उपहार भेंट करते रहते थे। उस क्षेत्र में
प्रवेश करने पर, गुरुदेव को इस विषय में जानकारी मिली कि वहाँ पर एक साधु ने
चमत्कारी आतँक मचा रखा है। स्थानीय लोग भय के कारण अँधविश्वासी बनते जा रहे हैं। इस
बात को लेकर गुरुदेव को चिन्ता हुई कि एक साधु अपने मूल लक्ष्य से भटक गया है तथा
प्रभु की दी हुई शक्तियों का दुरोपयोग करके समाज में भय उत्पन्न कर रहा है। जबकि
साधु सन्तों का आचरण ऐसा होना चाहिए, जिससे समस्त समाज को लाभ ही लाभ हो। गुरुदेव
जी उसको मिलने के लिए पहुँचे। परन्तु वह तो गुरुदेव को भी चुनौती देने लगा था, मैं
आपको तब जानूँगा जब आप मुझे चमत्कारी शक्तियों से पराजित कर देंगे। ऐसे में गुरुदेव
जी शान्तचित होकर कीर्तन में लीन हो गए तथा उसके अहँ रोग को दूर करने के लिए बाणी
उच्चारण करने लगे:
आतम महि रामु राम महि आतमु चीनसि गुर बीचारा ।।
अंम्रित बाणी सबदि पछाणी दुख काटै हउ मारा ।।
नानक हउमै रोग बुरे ।।
जह देखां तह एका बेदन आपे बखसै सबदि धुरे ।। 1 ।। रहाउ ।।
राग भैरउ, अंग 1153
गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में संगत से कहा, जब साधक के हृदय में
अपनी साधना के बल का अभिमान आ जाए तो समझना लेना चाहिए प्रभु उससे अप्रसन्न हैं
क्योंकि प्रभु उस साधक की परीक्षा लेने के लिए उसे अभिमान रूपी रोग प्रदान कर रहे
हैं। जब तक साधक अपने हृदय से अहँभाव अर्थात अभिमान यानि हउमै निकालकर बाहर नहीं
करता तब तक प्रभु मिलन में यह हउमै दीवार के रूप में विद्यमान रहती है। जब साधक
अहँभाव त्यागकर नम्र हो जाता है तब आत्मा परमात्मा का मिलन होता है। अर्थात अहँभाव
की दीवार टूट जाती है जो कि मिलन में बाधक है। केर भाग तपी इस तरह इन प्रवचनों तथा
शब्द की ‘चोट खाने से’ गुरुदेव के चरणों में आ गिरा और क्षमा याचना करने लगा।
गुरुदेव ने उसे कहा आत्मबल का प्रयोग बिना कारण करना, प्रकृति के कार्यों में
हस्तक्षेप करना है जिससे आत्मिक उन्नति रुक जाती है जबकि सभी प्राप्तियाँ नम्रता
में ही फलीभूत होती हैं।