SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

32. वली कँधारी (हसन अबदाल-पँजा साहिब, पँजाब)

श्री गुरू नानक देव जी मुज़फराबाद, काशमीर से प्रस्थान कर आगे बढ़े और एक छोटी सी पहाड़ी की तलहटी में आ विराजे। दूर-दूर तक पानी न होने के कारण वह स्थान निर्जन था। क्योंकि उन दिनों वहाँ पर दूर तक कहीं पानी नहीं मिलता था। जब दोपहर का समय हुआ तो भाई मरदाना जी ने गुरुदेव से विनती कीः हे गुरुदेव ! मुझे प्यास लगी है। कृपया मुझे पानी पिलाने का कोई प्रयत्न कीजिए। गुरुदेव ने कहाः यहाँ दूर-दूर तक कोई बस्ती दिखाई नहीं देती। केवल इस पहाड़ी की चोटी पर एक झौपड़ी है अतः वहाँ पानी अवश्य होना चाहिए। आप वहाँ जाकर पानी पी आओ। भाई मरदाना जी, गुरुदेव से आज्ञा लेकर पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे। वहाँ उनको एक सूफी फ़कीर इबादत करते हुए दिखाई दिया जो कि पहले कभी कन्धार, अफगानिस्तान का रहने वाला था। इसलिए उनको वहाँ देहात में वली कँधारी के नाम से पुकारते थे। वली कँधारी ने भाई मरदाना जी से पूछाः आप कहाँ से आए हैं और कहाँ जा रहे हैं ? आप अकेले हैं या कोई और भी आप के साथ है ? भाई मरदाना ने कहाः हम काशमीर से आ रहे हैं तथा पँजाब का भ्रमण करने का कार्यक्रम है। मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ मेरे गुरू, बाबा नानक देव जी भी हैं। यह उत्तर सुनकर वह बोलाः तेरा नाम क्या है और तू किस जाति से सम्बन्ध रखता है ? भाई मरदाना ने कहाः मैं जाति से मिरासी हूँ। मेरा नाम मरदाना है एवँ जन्म से मुस्लिम हूँ। यह सुनते ही वली कंधारी क्रोधित होकर कहने लगाः तुँ मुस्लिम होकर एक हिन्दू काफिर को अपना मुरशिद मानता है ? तुम्हें तो मर ही जाना चाहिए। मैं तुझ जैसे को पानी नहीं पिला सकता। किन्तु भाई मरदाना जी शान्त रहे। उन्होंने एक बार फिर वली कन्धारी से विनम्रता पूर्वक प्रार्थना कीः हे साँई जी ! आप मुझे पानी पिला दें मैं प्यासा हूँ। प्यासे को पानी पिलाना बहुत पूण्य का कार्य है। परन्तु वली और अधिक क्रोधित होकर कहने लगाः यदि तुम सीधे से जाते हो तो ठीक है, नहीं तो पीट-पीटकर भगा दूँगा। इस पर मरदाना जी निराश होकर लौट आए और गुरुदेव को पूरी घटना कह सुनाई कि वह आप का बहुत अपमान कर रहा था और मुझे गालियाँ दे रहा था। जैसे कि तुझे जीने का कोई अधिकार नहीं, इत्यादि। गुरुदेव ने बहुत धैर्य से सब वार्ता सुनी और कहाः इसमें ऐसी कौन सी गलत बात है ? फ़कीर साईं को क्रोध आ गया होगा खैर, कोई बात नहीं आप एक बार फिर जाएँ और उसे बहुत नम्रता पूर्वक विनती करें कि पानी पिला दें। गुरुदेव का आदेश मान कर भाई मरदाना जी फिर से पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे। तथा बहुत ही नम्रता पूर्वक विनती करने लगेः हे साईं जी ! आप महान हैं, आप मेरी भूल की तरफ ध्यान न देकर, मुझे पानी पिला दें। अन्यथा मैं प्यास से मर जाऊँगा। यह बात सुनकर वली कँधारी बहुत जोर से हंसा और कहने लगाः ऐ मूर्ख जिसे तूने अपना मुरशिद यानि गुरू बनाया है, उसमें इतनी भी अजमत यानि आत्मशक्ति नहीं जो तुझे पानी पिला दे। उसने तुझे मेरे पास दुबारा क्यों भेजा है ? तथा डाँटते हुए उसने भाई जी को निराश वापस लौटा दिया। वापस लौटकर भाई मरदाना गुरुदेव के चरणों में लेट गए और कहने लगेः गुरुदेव, उसने मुझे, लाख मिन्नत करने पर भी पानी नहीं पिलाया। और पीटने की धमकी देते हुए आपका भी अपमान किया। अब तो बस आप मुझे पानी पिला दें, नहीं तो मैं यहीं प्राण त्याग दूँगा। गुरुदेव मुस्करा दिये और कहने लगेः वह फ़कीर साईं है, उसकी बात का बुरा नहीं मानते। एक बार तुझको फिर उसके पास जाना ही होगा शायद उसे दया आ ही जाए। भाई मरदाना जी न चाहते हुए भी गुरुदेव के आदेश को मानते हुए तीसरी बार पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे और पानी के लिए नम्रता पूर्वक आग्रह करने लगे। किन्तु वली कँधारी इस बार भाई मरदाना को देखकर आग बबूला हो उठा। उसने एक लाठी ली और भाई जी को पीटने दौड़ा। भाई मरदाना जी यह देखकर कि वली उसे पीटने वाला है, भागकर पहाड़ी से नीचे उतरने लगे और निढाल अवस्था में गुरुदेव के चरणों पर गिरकर कहने लगे, अब मैं प्यास से प्राण त्याग रहा हूँ। यदि आप मुझे जीवित देखना चाहते हैं तो मुझे तुरन्त पानी पिला दें। गुरुदेव जी ने उन्हें धैर्य बँधाया और कहाः हम आपको मरने नहीं देंगे। आप अपनी आवश्यकता अनुसार पानी पी लेना। परन्तु इससे पहले यह छोटी सी चट्टान हटानी होगी। इसके नीचे पानी ही पानी है। भाई जी ने तुरन्त आज्ञा मानकर चट्टान को सरकाने का प्रयत्न किया, जैसे ही वह चट्टान जरा सी सरकी तो नीचे से मीठे जल का एक चश्मा फूट निकला। भाई जी बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने अपनी प्यास बुझाई और फिर से कीर्तन करने में लीन हो गए। उधर वली कँधारी को जब पानी की आवश्यकता हुई तो वह अपनी बावली पर पहुँचा। परन्तु क्या देखता है ? उसकी बावली तो सूख गई थी। वहाँ पर पानी के स्थान पर कीचड़ ही कीचड़ रह गया था। यह देखकर वह बहुत परेशान हुआ और सोचने लगा, हो सकता है उस काफिर फ़कीर की अज़मत के कारण पानी सूख गया हो। अतः वह पहाड़ी के नीचे देखने लगा तो पता चला कि नीचे पानी के झरने बह रहे थे तथा गुरुदेव को कीर्तन में व्यस्त पाया। यह सब देखकर वह क्रोध से अँधा हो गया। उसने कहा, यह काफिर नापाक, अपवित्र राग में गाता है। इसे मौत के घाट उतारना ही बेहतर होगा। इसलिए उसने एक बड़ी चट्टान गुरू जी की तरफ धकेल दी जो कि बहुत तीव्र गति से लुढ़कती हुई गुरुदेव की तरफ बढ़ने लगी। किन्तु यह क्या ? गुरुदेव ने चट्टान की भयानक आवाज सुनकर अपना हाथ उस ओर कर दिया, मानो कह रहे हो, हे चट्टान रुको। बस फिर क्या था, वह चट्टान नीचे आते-आते धीमी गति में चली गई और अन्त में गुरुदेव के हाथ से स्पर्श करके वहीं खड़ी हो गई। इस दृश्य को देखकर वली कँधारी कौतूहल वश परेशान हो उठा। वह सोचने लगा कि कहीं उससे भूल हो गई है ? अतः उसे एक बार इस फ़कीर को ज़रूर मिलना चाहिए। यह विचार करके वह पहाड़ी से नीचे उतरा और गुरू जी की शरण में आ गया। गुरुदेव ने उसे कहा, करते हो इबादत परन्तु दो घूँट पानी भी अल्लाह के नाम पर नहीं पिला सकते। फ़कीरी क्या ? और नफरत क्या ? फ़कीर होकर दिल में इतना मतभेद ? यह मोमन है वह काफिर है ? हर एक इन्सान में उस खुदा का नूर तुम्हें दिखाई नहीं देता तो इबादत कैसे परवान चढ़ेगी ? यह बातें सुनकर वली कँधारी का सारा अभिमान जाता रहा। और उसने गुरुदेव से क्षमा याचना की। गुरुदेव ने उसे उपदेश देते हुए कहा, बाकी के जीवन में इबादत के साथ-साथ सेवा भी किया करो, जिससे अभिमान अहँभाव तुम्हें लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकता।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.