31. सत्य मार्ग के पँथियों पर संतुष्ट
(मुज़फराबाद नगर, काशमीर)
श्री गुरू नानक देव जी उड़ी क्षेत्र से मुज़फराबाद नगर में पहुँचे।
वहाँ के निवासी आध्यात्मिक दुनिया से सम्बन्ध बनाए रखते थे। वहाँ के अधिकाँश लोग
साधु संगत करने में विश्वास रखते थे तथा आए गये साधु फ़कीरों का आदर सम्मान करना उनका
स्वभाव था। उन लोगों ने गुरुदेव के पधारने पर उनका भव्य स्वागत किया तथा आप जी को
एक धर्मशाला में ठहराया गया। जहां पर आपका कीर्तन सुनने के लिए जनता को आमन्त्रित
किया गया। कुछ जिज्ञासुओं ने आपसे अनुरोध किया कि प्रभु मिलन का सहज मार्ग बताएँ
जिससे जीवन को सफल किया जा सके। उनका विचार सुनकर गुरुदेव अति प्रसन्न हुए और कहने
लगे, यहाँ के निवासी विवेकशील हैं तथा आध्यात्मिक दुनिया में जल्दी ही स्थान बना
लेंगे क्योंकि इन्होंने सत्यमार्ग को पहचानने का पहला कार्य कर लिया है। जिसके
फलस्वरूप यहाँ पर कर्मकाण्ड इत्यादि निरर्थक कार्य नहीं किए जाते। गुरुदेव ने बाणी
उच्चारण की:
निकटि वसै देखै सभु सोई ।। गुरमुखि विरला बूझै कोई ।।
विणु भै पइऐ भगति न होई ।। सबदि रते सदा सुखु होई ।।
ऐसा गिआनु पदारथु नामु ।। गुरमुखि पावसि रसि-रसि मानु ।। 1 ।। रहाउ ।।
गिआनु गिआनु कथै सभु कोई ।। कथि कथि बादु करे दुखु होई ।।
कथि कहणै ते रहै न कोई ।। बिनु रस राते मुकति न होई ।। 2 ।।
गिआनु धिआनु सभु गुर ते होई ।। साची रहत साचा मनि सोई ।।
मनमुख कथनी है पर रहत न होई ।। नावहु भूले थाउ न कोई ।।
राग बिलावलु, अंग 831
अर्थ: प्रभु कहीं दूर नहीं रहता, बस इस रहस्य को समझना और समझाना
ही संगत करने का मुख्य उद्देश्य है। इसकी प्राप्ति के लिए पहला कार्य हृदय में, उस
परमशक्ति का भय उत्पन्न करना है। जब तक आप उसे सर्वशक्तिमान नहीं मानते, प्राप्ति
के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। इस सबके लिए एकमात्र सहारा नाम का है जो कि शबद
की सहायता से लिया जाता है।