29. एकमात्र पुस्तकीय ज्ञान का खण्डन
(बारामूला नगर क्षेत्र, काशमीर)
श्री गुरू नानक देव जी, श्रीनगर के आसपास के स्थलों से होते हुए,
जेहलम नदी के किनारे बसे नगर बारामूला में पहुँचे। प्राचीनकाल से काश्मीर घाटी में
प्रवेश करने का मुख्य मार्ग, जेहलम नदी के साथ साथ ही था। गुरुदेव आगे बढ़ते हुए वहाँ
के विद्यापीठ में पहुँचे, जहां पर विधार्थियों को वेदों शास्त्रों का अध्ययन कराया
जाता था। आप जी ने चिनार के एक वृक्ष के नीचे बैठकर उनका पाठ्यक्रम देखा और त्रुटि
भरे अध्ययन पर टीका कर दिया:
दीवा बलै अंधेरा जाइ ।। बेद पाठ मति पापा खाइ ।।
उगवै सूरु न जापै चंदु ।। जह गिआन प्रगासु अगिआनु मिटंतु ।।
बेद पाठ संसार की कार ।। पढि पढि पण्डित करहि बीचार ।।
बिनु बूझे सब होइ खुआर ।। नानक गुरमुखि उतरसि पारि ।। राग सूही, अंग 791
अर्थः जब दीया जगता है तो अन्धेरा दूर हो जाता है। इसी प्रकार
वेद आदि धर्म ग्रन्थों की बाणी के अनुसर ढली हुई मति पापों का नाश कर देती है। जब
सूर्य चढ़ता है तो चन्द्रमाँ छिप जाता है। वैसे ही अगर उज्वल मति का प्रकाश हो जाए
तो अज्ञानता मिट जाती है। वेद पाठ और धर्म ग्रन्थों का केवल पाठ करना तो केवल
दुनियावी ही समझो। विद्वान लोग इनको पढ़-पढ़कर इनके मात्र अर्थ ही विचारते हैं। जब तक
मति नहीं बदलती तब तक केवल पाठ करने और उनके अर्थ विचारने से कुछ होने वाला नहीं
है। हे नानक ! वो मनुष्य ही पापों के घने अन्धेरे से पार निकलता है, जिसने अपनी मति
गुरू के हवाले की होती है। पण्डितों को जब गुरुदेव की विचारधारा का ज्ञान हुआ, तो
वे गुरुदेव से उलझकर कहने लगे, हम इस ज्ञान को प्राचीनकाल से बाँटते चले आ रहे हैं।
जबकि आप इस ज्ञान का खण्डन कर रहे हैं इसका कारण बताए ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा,
मैं न खण्डन कर रहा हूँ न मण्डन। मैं तो उस तत्वज्ञान की बात कह रहा हूँ जिसकी
प्राप्ति से मनुष्य का आचरण उज्ज्वल हो उठता है परन्तु इस प्रकार के किताबी ज्ञान
में केवल अहँभाव ही बढ़ेगा जो कि व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है। सभी बहुत
प्रभावित हुए।