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27. सेवा सिमरन से अन्तःकरण स्वच्छ (आवन्तीपुर, काशमीर)

श्री गुरू नानक देव जी अनँतनाग नगर में पण्डितों को प्रभु भजन की विधि दृढ़ करवाकर आगे श्रीनगर की तरफ बढ़े। रास्ते में अवन्तीपुर कस्बे में आपकी भेंट एक सूफी फ़कीर कमाल से हो गई। जो कि यात्रियों को जलपान कराकर सेवा किया करता था। उसकी सेवा देखकर गुरुदेव बहुत प्रसन्न हुए। विचारविमर्श होने पर फ़कीर कमाल ने पूछा: कि हे गुरू जी ! यदि अल्लाह हमारे भीतर ही है तो उसकी इबादत में उसका नाम जपने की क्या आवश्यकता है ? जबकि हम उसे अनुभव कर रहे हैं ? गुरुदेव ने उत्तर दिया: आइने में अपना मुख तभी दिखाई देगा जब वह स्वच्छ होगा। यदि वह मैला है तो उसे पहले स्वच्छ करना ही होगा। हृदय रूपी आइने में कई जनमों की मैल ठीक उसी प्रकार लगी हुई है। उसकी मलीनता को स्वच्छता में बदलने के लिए अल्लाह के गुणों का गुणगान जरूरी है। इसलिए उसका कोई भी गुण लेकर, उस गुण वाचक नाम से उसकी याद द्वारा मन की मैल धोनी होगी। जिससे अंतःकरण स्वच्छ हो जाए। जैसे ही सेवा तथा सिमरन से अन्तःकरण स्वच्छ होता है, वैसे ही उस प्रभु के दर्शन होने प्रारम्भ हो जाते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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