21. गडरीये को दिशा निर्देश (सर्कदू
गाँव, लद्दाख क्षेत्र)
श्री गुरू नानक देव जी बासगो से प्रस्थान करके सिंधु नदी के
किनारे-किनारे बढ़ते सर्कदू गाँव के निकट पहुँचे और एक रमणीक स्थान पर कीर्तन में
लीन हो गए, एक गडरिया उसी समय आपके पास आया और नम्रतापूर्वक विनती करने लगा, हे
फ़कीर साईं जी ! आपने कहीं मेरी भेड़ें तो नहीं देखी, जब मैं खाना खा रहा था तब कुछ
भेड़ें न जाने कहाँ चली गई हैं, वे मिल ही नहीं रहीं। यदि वे भेड़ें न मिली तो मेरा
मालिक मुझे बुरी तरह मारेगा। उत्तर में गुरुदेव ने कहा, तुम्हारी भेड़ें यहाँ तो नहीं
आई परन्तु उनको ढूँढने में तेरी सहायता अवश्य की जा सकती है। वह युवक कहने लगा,
फ़कीर जी, जिन-जिन चरगाहों में, मैं अक्सर भेड़ें चराता हूँ सभी स्थान तो मैंने देख
लिए हैं। अब मैं निराश हो चुका हूँ। गुरुदेव ने उसे धैर्य बन्धाया और कहा, अल्लाह
पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा और उसके साथ उस की भेड़ें ढूँढने चल पड़े। भेड़ों के
पदचिन्हों के अनुसार बढ़ते गए। आगे जाकर एक जगह पर भेड़ों के मैं-मैं करने का
धीमा-धीमा स्वर सुनाई दिया, परन्तु वहाँ पर दूर-दूर तक भेड़ें कहीं भी दिखाई नहीं दे
रही थी। आवाज की सीध में बढ़ते हुए गुरुदेव एक गहरे खड्डे के पास पहुँचे वहां पर एक
के पीछे एक करके भेड़ें नीचे उतर गई थी परन्तु बाद में वे वापस ऊपर नहीं चढ़ पाईं।
जैसे ही गडरिये को भेड़ें मिलीं वह खुशी से नाचने लगा और भेड़ों को लेकर अपने मालिक
के पास पहुँचा। मालिक ने देर से लौटने का कारण पूछा जिसके उत्तर में उसने अपने
मालिक को आज की घटना बताई कि एक फ़कीर साईं ने भेड़ें ढूँढने में उसकी सहायता की है।
यह सुनकर भेड़ों का स्वामी गुरुदेव को मिलने आया। उसने गुरुदेव से आग्रह किया कि वे
उसके साथ उसके घर पर चलकर विश्राम करें। गुरुदेव ने उसका अनुरोध स्वीकार किया और
गाँव में चले गए। दूसरी सुबह प्रातःकाल हरियश के लिए गुरुदेव ने कीर्तन प्रारम्भ
किया:
माइआ सुत दारा जगत पिआरा चोग चुगै नित फासै ।।
नामु धिआवै ता सुख पावै गुरमति कालु न गासै ।।
राग तुखारी, अंग 1110
गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कहा, मानव जीवन अमूल्य है अतः
प्रातःकाल स्नान इत्यादि से निपटकर प्रभु चरणों में एकाग्र मन से भजन में बैठना
चाहिए। इस प्रकार लक्ष्यों की प्राप्तियाँ होती हैं।