18. प्रभु स्वयँभू है (लद्दाख का चशूल
गाँव, काशमीर)
श्री गुरू नानक देव जी तिब्बत के रुडोक नगर से चशूल दर्रा पार
करके चशूल गाँव में पहुँचे। उन दिनों में भी गाँव के समस्त निवासी बौद्ध धर्म के
अनुयायी थे। उन्होंने गुरुदेव की विचित्र वेशभूषा देखकर पूछा आप तिब्बत के निवासी
तो है नहीं अतः आप यहाँ पर कहाँ से आ रहे हैं। इस पर गुरुदेव ने अपना प्रयोजन बताते
हुए कहा, हम निराकार प्रभु के उपासक हैं और उसी के नाम के प्रचार के लिए विश्व
भ्रमण पर निकले हैं। इस पर साकार तथा निराकार प्रणालियों को लेकर विचार-विमर्श
प्रारम्भ हुआ। गुरुदेव ने कहा, साकार या स्थूल वस्तु के निर्माण का एक निश्चित समय
होता है। यह बात स्वाभाविक है कि जिसका निर्माण या जन्म हुआ है उसका विनाश या मरण
अवश्य ही होगा। इसलिए वह वस्तु, मूर्ति या मनुष्य जो समय के बन्धन में आते हैं, वे
प्रभु नहीं हो सकते। प्रभु तो अमर है तथा समय के बन्धनों से मुक्त है। इस पर लामा
लोगों ने प्रश्न उठाया कि फिर प्रभु का निर्माता कौन है ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा:
आपीनै आपु साजिओ आपीनै रचिओ नाउ ।।
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ ।। राग आसा, अंग 463
अर्थ: उस महाशक्ति ने अपना निर्माण भी स्वयँ ही किया है। उसका
निर्माता कोई दूसरा नहीं है। वह समस्त प्रकृति का निर्माण करके उसमें स्वयँ
विराजमान होकर, एक रस, सर्वव्यापक होकर रमा हुआ है।