16. व्यापारीयों के शौषण के विरुद्ध
आन्दोलन (ज्ञार्सा नगर, तिब्बत)
जोहड़सर, माहीसर इत्यादि स्थानों से होते हुए गुरुदेव जी
हिन्दुस्तान-तिब्बत राजमार्ग पर पहुँचे। रास्ते मे आपने रामपुर कस्बे से गुजरते हुए
सतलुज वादी स्थित जिला किनौर के कस्बे काल्पा, पूह नाको एवँ कौरिफ इत्यादि स्थानों
पर जनसाधारण का उद्धार करते हुए, भारतीय सीमा के पार तिब्बत जम्बू कस्बे में पहुँचे।
वहाँ से आगे ज्ञार्सा नगर पहुँचकर गुरुदेव ने प्रचार अभियान के लिए कुछ दिन वहाँ पर
पड़ाव डाला। उन दिनों भी वहाँ पर बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते थे। आप जी अपने पहले
प्रचार-दौरे के दिनों में लासा इत्यादि नगरों में बहुत दिन रह चुके थे। अतः आप जी
वहाँ की सँस्कृति तथा समस्याओं के विषय में भली भान्ति जानते थे। इसलिए वे लोग आप
जी के युक्ति पूर्ण, तर्कसँगत, विचारों से बहुत प्रभावित हुए। जनसाधारण ने आपके
समक्ष अपनी समस्याएँ रखीं और कहा, हमारी गरीबी का मुख्य कारण यहाँ के व्यापारी लोग
हैं, जो कि रोजमर्रा की वस्तुएँ– नमक, तेल, कपड़ा इत्यादि बहुत ऊँचे दामों पर बेचते
हैं तथा हमारी वस्तुएँ कौड़ियों के भाव खरीदते हैं। क्योंकि यहाँ के व्यापार पर इनका
एकाधिकार है। ये लोग अपनी मनमानी से जनसाधारण का शोषण करते हैं। गुरुदेव ने इस पर
कुछ व्यापारियों को आमँत्रित किया और उनसे इस विषय में सत्य जानना चाहा। इस प्रश्न
के उत्तर में व्यापारियों ने तर्क दिया कि वे लोग पँजाब के मैदानी क्षेत्र से खचरों
पर माल लादकर, लम्बी पर्वत क्षृँखला पार करके यहाँ तिब्बत पहुँचते हैं, तो माल पर
खर्च बहुत आता है। अतः वे मजबूर हैं। गुरुदेव ने उनको उचित दाम लेने के लिए प्रेरित
किया किन्तु यह बात भी उनको अमान्य थी। इसलिए इस विषय पर वे सब एक मत नहीं हो पाए।
गुरुदेव ने तब उनकी मानसिक दशा का चित्रण अपनी बाणी में इस प्रकार किया:
चिटे जिन के कपड़े मैले चित कठोर जीउ ।। राग सूही, अंग 751
अर्थ: कुछ लोग साफ-सूथरे कपड़े पहनते हैं, किन्तु अगर उनके दिल
पत्थर की तरह कठोर हों यानि कि उनका दिल लोभ की गन्दगी से भरा हुआ हो तो फिर साफ
सुथरे कपड़े पहनकर भी वह लोग अपवित्र हैं, गन्दे हैं।