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12. प्रभु पर दृढ़ भरोसा (धर्मपुर, हिमाचल प्रदेश)

श्री गुरू नानक देव जी पिंजौर से प्रस्थान करके अपने अगले पड़ाव, धर्मपुर पहुँचे। उन दिनों तिब्बत से व्यापार इसी रास्ते से होता था। रास्ते में आपको अनेक यात्री मिले जो कि सपाटू से होकर जोहड़सर नामक स्थान पर पर्वतीय मेले के लिए जा रहे थे। धर्मपुर में आप जी ने एक चश्मे, पानी के स्त्रोत के पास डेरा लगाया। अमृत बेला में गुरुदेव ने नित्यकर्म के अनुसार कीर्तन प्रारम्भ किया, जिसकी मधुरता के आकर्षण से यात्री वही खिंचे चले आए:

हरि धनु संचहु रे जन भाई ।।
सतिगुर सेवि रहहु सरणाई ।।
तसकरु चोरु न लागै ता कउ धुनि उपजै सबदि जगाइआ ।।
तू एकंकारु निरालमु राजा ।।
तू आपि सवारहि जन के काजा ।।
अमरु अडोलु अपारु अमोलकु हरि असथिर थानि सुहाइआ ।।
देही नगरी ऊत्तम थाना ।।
पंच लोक वसहि परधाना ।।
ऊपरि एंककारु निरालमु सुंन समाधि लगाइआ ।। राग मारू, अंग 1039 

अर्थ: मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य हरिनाम धन की कमाई करना ही है। इस कार्य के लिए हृदय से किसी पूर्ण पुरुष की शिक्षा अनुसार जीवन यापन करना अति आवश्यक है। यदि आप हरिनाम रूपी धन एकत्रित करने मे सफल हो जाते हैं तो इसको कोई भी, किसी विधि द्वारा छीन नहीं सकता। शब्द की धुनि ही सोई हुई जीव आत्मा को जगाकर प्रभु मिलन के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार अपार जनसमूह ने गुरुदेव का सँग करते हुए आगे की यात्रा प्रारँभ की।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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