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11. भजन करने की प्रेरणा (पिंजौर ग्राम, हरियाणा)

श्री गुरू नानक देव जी नालागढ़ की संगत से विदा होकर पिंजौर ग्राम पहुँचे। वहाँ पर बहुत से यात्री जोहड़सर के वार्षिक उत्सव में भाग लेने के लिए ठहरे हुए थे। गुरुदेव ने अपने नित्यकर्म अनुसार अमृत बेला में कीर्तन प्रारम्भ कर दिया और हरियश गाने लगे: 

खाणा पीणा हसणा सउणा विसरि गइआ है मरणा ।।
खसमु विसारि खुआरी कीनी ध्रिगु जीवणु नही रहणा ।। 1 ।।
प्राणी एको नामु धिआवहु ।।
अपनी पति सेती घरि जावहु ।। 2 ।। रहाउ ।। राग मलार, अंग 1254
 
इसका अर्थ नीचे है

वहाँ पर पड़ौस में एक तालाब था। जहाँ पर स्थानीय लोग प्रातः काल में शौच स्नान के लिए आते थे। उन्होंने जब मधुर बाणी सुनी तो वे धीरे-धीरे गुरुदेव के समीप आकर कीर्तन श्रवण करने लगे। कीर्तन की समाप्ति पर गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कहा– हे मानव ! प्रभु ने तुझे अमूल्य रत्न रूपी काया उपहार स्वरूप दी है। अतः उस प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि इस सुन्दर काया का एक दिन तो त्याग करना ही पड़ेगा। इसलिए मृत्यु को मत भूलो और अपना समय केवल ऐश्वर्य में नष्ट मत करो। मातलोक में आने का मुख्य प्रयोजन क्या है, उस पर भी ध्यान दो। हे जीव ! यदि प्रभु चरणों में सम्मानपूर्वक स्थान लेना चाहते हो तो अपने जीवन में आराधना के लिए भी समय निश्चित करो।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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