69. भाई दोदा जी (पक्खो के रंधवे
ग्राम, पँजाब)
श्री गुरू नानक देव जी अपने माता पिता जी से विदाई लेकर तलवण्डी
नगर से अपने ससुराल, पक्खो के रँधवे ग्राम में परिवार को मिलने पहुँचे। इस बार
गुरुदेव का वहाँ पर भव्य स्वागत किया गया। सभी नगर निवासी बहुत प्रसन्न थे। विशेषकर
गाँव का चौधरी अजिता जी गुरुदेव से आग्रह करने लगा, अब आप यहीं बस जाओ, मैं आपको
जमीन खरीदने में सहायता करूँगा। उसके प्रस्ताव अनुसार बाबा मूलचन्द जी ने रावी नदी
के पश्चिमी तट पर उपजाऊ भूमि की निशानदेही कर ली थी। गुरुदेव ने स्थानीय संगत के
अनुरोध पर वहाँ एक प्रचार केन्द्र बनाने की योजना बनाई, जिसको कार्य रूप देने के
लिए आप जी स्वयँ उस स्थान का निरीक्षण करना चाहते थे। परन्तु बेटे लक्खमी दास का
विवाह बाबा मूलचन्द जी द्वारा निश्चित किया जा चुका था अतः सभी सम्बंधियों को
निमन्त्रण भेजे गए और उनके आने की प्रतीक्षा होने लगी। इस बीच समय मिलते ही एक दिन
गुरुदेव रावी के उस पार भाई मरदाना जी को साथ लेकर पहुँच गए। वहाँ पर एक रमणीक स्थल
देखकर आसन लगाया और प्रातःकाल होने पर कीर्तन में व्यस्त हो गए। वहाँ से एक किसान
महिला खेतों में काम कर रहे अपने पति के लिए, भोजन ले जाते हुए गुजरी, उसने जब मधुर
सँगीत में गुरुदेव जी की बाणी सुनी तो वह कीर्तन सुनने वहीं बैठ गई और कीर्तन श्रवण
करने लगी, कीर्तन समाप्ति पर उसने भाई मरदाना जी तथा गुरुदेव को वह भोजन परोस दिया।
और वह लौटकर घर गई, पुनः भोजन तैयार करके जब खेतों में पहुँची तब तक बहुत देर हो
चुकी थी। उसका पति दोदा बहुत नाराज़ हुआ कि उसने इतनी देर कहाँ की ? उसने बताया कि
नदी किनारे कोई साधु मण्डली हरियश में लीन थी अतः भोजन उनको खिलाकर, उसके लिए पुनः
भोजन तैयार करके लाई हूँ। दोदा विचार करने लगा कि साधुओं को भोजन कराना तो अच्छी
बात है परन्तु यह तो देखना परखना ही चाहिए कि साधु पाखण्डी इत्यादि ना हो। इस विचार
को मन में लेकर वह चुपके से समय मिलते ही वहाँ पहुँचा जहां पर गुरुदेव आसन लगाकर
हरियश में लीन थे। दोदा भी नमस्कार कर बैठ गया और कीर्तन सुनने लगा। गुरुदेव तब बाणी
उच्चारण कर रहे थे:
खाणा पीणा हसणा सउणा विसरि गइआ है मरणा ।।
खसमु विसारि खुआरी फीनी ध्रिगु जीवणु नही रहणा ।।
राग मलार, अंग 1254
अर्थः खाने, पीने, हसने और निन्द्रा ने इन्सान को मौत का डर भूला
दिया है। अपने साहिब को भूलाकर अर्थात परमात्मा को भुलाकर इन्सान ने अपनी जिन्दगी
फिटकार योग्य बना ली है और तबाह कर ली है। लेकिन इन्सान ने यह भूला दिया है कि उसे
यहाँ पर हमेशा नहीं रहना। (नोटः हर जन्म में इन्सान यही करता है, मकान बनाता है,
शादी करता है, बच्चे पैदा करता है, दुकानदारी या काम धंधा करता है। हम यह नहीं कह
रहे कि आप यह कार्य न करें, लेकिन इन कार्यों को करते हुए आप उस परमात्मा के अमृतमयी
नाम को, राम नाम को क्यों भूल जाते हैं, जो कि अन्त समय में आपको मूक्ति प्रदान
करेगा।) कीर्तन की समाप्ति पर दोदा जी ने गुरूदेव से पूछा: ‘‘आप कहाँ से पधारे हैं
और आपके आने का क्या प्रयोजन है ?’’ गुरूदेव ने उत्तर दिया: कि ‘‘हम रमते साधू हैं,
भगवान यहाँ ले आया है। हमारे यहाँ आने का प्रयोजन केवल मानव कल्याण के कार्य करना
है। परन्तु दोदा इस उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुआ। क्योंकि उसके मन में सँशय उत्पन्न
हो गया था। उसने फिर पूछा: संत जी ‘‘आपका मानव कल्याण से क्या तात्पर्य है और हमें
आप क्या दे सकते हैं ? क्योंकि हमारे पास धन सम्पदा का आभाव तो है ही नहीं।’’
गुरूदेव जी ने कहा: कि ‘‘वही तो हम कीर्तन में कह रहे थे कि हे प्रभु ! आपने हमें
अमुल्य मानव शरीर दिया है और अनंत धन सम्पदा दी है। परन्तु हमने कभी तेरा ध्न्यवाद
भी नहीं किया जबकि हम जानते हैं कि सँसार सब मिथ्या है एक न एक दिन हम सबने अवश्य
ही सँसार से विदा लेनी है।’’ दोदा, गम्भीर मुद्रा में बोला: ‘‘गुरू जी ! आपकी बात
में तथ्य तो है परन्तु यह धन सम्पदा मैंने अपने परिश्रम से अर्जित की हैं, इसमें
प्रभु का क्या काम ?’’ गुरूदेव ने इस उत्तर में कहा: कि भाई, ‘‘आप खूब परिश्रम करें,
यदि भगवान समय अनुसार वर्षा ही न करें तो खेतों में फसल फूले-फलेगी कैसे ?’’ इतने
में दोदे की पत्नी उसे खोजती हुई वही पुनः चली आई और पति को गुरूदेव के समक्ष पाकर,
गुरूदेव के चरणों में विनती करने लगी, ‘‘हे प्रभु, सम साई जी! हमें सन्तान सुख
प्राप्त नहीं है, कृप्या हमारी यह अभिलाषा पूर्ण होने के लिए वरदान दें।’’ गुरू जी
ने दोदे से प्रश्न किया: कि ‘‘प्रायः सभी गृहस्थियों के यहाँ सन्तान होती है परन्तु
तुम्हारे यहाँ क्यों नहीं है ? इसका सीधा सा अर्थ है सभी कुछ उस प्रभु के हाथ में
है और उसी की कृपा दृष्टि अथवा बरकतों से सँसार चल रहा है।’’ गुरूदेव जी ने दोदे की
पत्नी को सांत्वना दी और कहा: कि ‘‘सन्तान उत्पत्ति का उपाय यही है कि आप यहाँ एक
धर्मशाला बनवायें और उसमें नित्यप्रति सतसँग होना चाहिए फिर वे सतसँगी मिलकर किसी
दिन आपके लिए प्रभु चरणों में सन्तान के लिए प्रार्थना करेंगे जो अवश्य ही
स्वीकार्य होगी।