66. श्रमिकों में आस्था जाग्रित (बठिण्डा
नगर, पँजाब)
श्री गुरू नानक देव जी हिसार नगर से बठिण्डा नगर पहुँचे। नगर के
बाहर आप अमृत समय में कीर्तन करने में व्यस्त हो गए। उस समय कुछ श्रमिक, मजदूरी की
तलाश में नगर जा रहे थे। गुरुदेव की मीठी बाणी सुनकर वे प्रार्थना करने लगे, हे गुरू
जी ! हमें कोई जीविका अर्जित करने की युक्ति बताएँ क्योंकि इस वर्ष वर्षा अच्छी न
होने से खेती ठीक नहीं हुई। अतः मजदूरी भी कहीं मिल नहीं पाती। गुरुदेव ने श्रमिकों
की विवशता को जानते हुए उन्हें धैर्य बन्धाया और कहा, प्रभु सबका स्वामी है अतः
प्रत्येक प्राणी को रिज़क देना उसका मुख्य कार्य है। वह बच्चे के जन्म से पहले माता
के स्तनों में दूध भेजता है। जल में तथा भूमि के नीचे रहने वाले जीवों को भी जीविका
प्रदान कर रहा है किन्तु आप तो मनुष्य है अतः आप को विचलित नहीं होना चाहिए। इसी
सन्दर्भ में गुरुदेव ने बाणी उच्चारण की:
पवणु पाणी अगनि तिनि कीआ, ब्रह्मा बिसनु महेस अकार ।।
सरबे जाचिक तूं प्रभु दाता, दाति करे अपुनै बीचार ।।
कोटि तेतीस जाचहि प्रभ नाइक देदे तोटि नाही भंडार ।।
ऊधै भांडै कछु न समावै सीधै अंम्रितु परै निहार ।। राग गुजरी, अंग 504
अर्थः परमात्मा ने हवा, जल, आग, ब्रहमा, विष्णु, शिव और सारी
रचना बनाई है। हम सारे भिखारी हैं, केवल तूँ (परमात्मा) ही दातार स्वामी है। तूँ
अपनी रजा और हुक्म अनुसार बकशिशें और रहमतें करता है। तेतीस (33) करोड़ देवी और देवता
परमात्मा से माँगते हैं और परमात्मा के खजाने देने से खत्म नहीं होते। जिस प्रकार
उल्टे बर्तन में कुछ भी नहीं डाला जा सकता, जबकि सीधे में अमृत भरता नजर आता है।
भाव यह है कि अगर इन्सान उल्टे कर्म करेगा और बईमानी, वासना आदि में ही लगा रहेगा
तो वो उस उल्टे बर्तन की तरह हो जाएगा, जिसमें कभी भी परमात्मा का नाम रूपी अमृत नहीं
डाला जा सकता। अन्त में गुरुदेव कहने लगे, बस एक ही बात समझने की है कि उसकी कृपा
दृष्टि सदैव हो रही है केवल कृपा के पात्र बनने के लिए प्राणी को उसके सनमुख होना
चाहिए। नहीं तो वह ठीक उसी प्रकार वँचित रह जायेगा जिस प्रकार घड़ा उलटा होने के
कारण वर्षा के पानी से भर नहीं पाता।
भगति करि चितु लाइ हरि सिउ छोडि मनहु अंदेसिआ ।।
सचु कहै नानकु चेति रे मन जीअड़िआ परदेसीआ ।। राग आसा, पृष्ठ 439
अर्थः हे मेरे परदेसी मन ! अपने परमात्मा के नाम सिमनर की कमाई
कर, अपने आप को परमात्मा के साथ जोड़ और अपने चित्त में से सारी फिक्र और चिन्ता दूर
कर। नानक जी कहते हैं कि यह बात सच है कि अपने दिल में, मन में उस सर्वशक्तिशाली हरि
का सिमरन कर जो तेरी सभी चिन्ताओं को हर लेगा और तूझे सुख ही सुख प्राप्त होगा।
गुरुदेव के उत्साहित करने पर श्रमिक वर्ग में आत्म विश्वास जाग्रत हो गया। वह प्रभु
में आस्था लेकर अपने नगर पहुँचे। नगर के प्रशासनिक अधिकारी नगर के दुर्ग की मरम्मत
करवाने के लिए कुछ श्रमिकों की तलाश में थे। अतः उन्होंने श्रमिकों को बुलाकर उनको
तुरन्त रोजगार दे दिया।