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65. सँसार मिथ्या है (हिसार नगर, हरियाणा)

श्री गुरू नानक देव जी रिवाड़ी से हिसार नगर पहुँचे। आप जी ने नगर के बाहर एक कूएँ के निकट अपना आसन लगाया। सँध्या के समय कुछ महिलाएँ जल भरने के लिए आई तो आप जी एवँ भाई मरदाना जी कीर्तन कर रहे थे। कीर्तन की मधुरता के कारण महिलाएँ जल भरना भूलकर गुरुदेव के निकट आकर, कीर्तन का रसास्वादन सुनने लगी। कीर्तन की समाप्ति पर उन महिलाओं ने गुरुदेव से आग्रह किया, आप यहाँ निर्जन स्थान पर न रहकर नगर के बारात घर में ठहरें ताकि हमें अन्न-जल से आपकी सेवा का अवसर मिल सके। गुरुदेव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। अगली सुबह जब गुरुदेव कीर्तन करने में व्यस्त थे तो उनकी मधुर बाणी सुनकर आसपास के नर-नारी, हरि-यश सुनने एकत्र हो गए। कीर्तन करते समय गुरुदेव बाणी उच्चारण कर रहे थे:

कूड़ु राजा कूडु परजा कूड़ु सभु संसारु ।।
कूड़ु मंडप कूडु माड़ी कूड़ु बैसणहारु ।।
कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैनहणहारु ।।
कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ कूडु रूपु अपारु ।।
कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु ।।
कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ।।
किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ।।
कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु ।।
नानकु वखाणै वेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु ।। राग आसा, अंग 468

अर्थ: "ये सारा जगत छल रूप है, जैसे मदारी का तमाशा छल रूप है। इस सँसार में कोई राजा है ओर कई लोग प्रजा हैं। इस जगत में कितने की राजाओं के शामियाने, महल आदि हैं ये सब छल रूप है और इनमें बसने वाला राजा भी छल रूप ही है। यह शरीरक आकार, सुन्दर सुन्दर कपड़े, बेअंत सुन्दर रूप, यह सब भी छल है। प्रभु, मदारी की भाँति सँसार में आए जीवों को खुश करने के लिए यह तमाशे दिखा रहा है। प्रभु ने कितने ही आदमी और स्त्रियाँ बना दी हैं, ये सारे ही छल रूप हैं। इस दृष्टिमान छल में फँसे हुए मनुष्य का, इस छल में मोह हो गया है, जबकि सभी जानते हैं कि यह सँसार नाशवंत है, इसलिए किसी के साथ मोह नहीं होना चाहिए। परन्तु यह छल सभी जीवों को प्यारा लग रहा है और शहद की तरह मीठा लग रहा है। इस प्रकार यह छल सारे जीवों को डुबा रहा है। हे प्रभु, नानक तेरे आगे अरदास करता है कि आपके बिना सब जगत एक छल है।" कीर्तन समाप्ति पर गुरुदेव ने प्रवचनों में कहा, यह दृष्टिमान सँसार सभी नाशवान है, इसलिए केवल एक प्रभु के अतिरिक्त कहीं और स्नेह नहीं करना चाहिए, क्योंकि सभी ने बारी-बारी चले जाना है। तभी एक महिला रोती बिलखती आई और प्रार्थना करने लगी, हे गुरुदेव ! मेरे बच्चे का देहान्त हो गया है कृपया उसे पुनः जीवन दान दें। गुरुदेव ने उसे धैर्य बन्धाया और कहा, हे माता ! प्रभु की लीला है उसके हुक्म के आगे किसी का कोई बस नहीं चलता। अतः सभी उसके हुक्म के बँधे हुए चलते हैं। परन्तु उस महिला का विलाप थमने को न था। इसलिए गुरुदेव ने उस का रूदन देखते हुए कहा, हे देवी ! आप का बच्चा जीवित हो सकता है यदि आप किसी ऐसे घर से एक कटोरा दूध ला दें जहां कभी कोई मरा न हो ? वह महिला बात का रहस्य जाने बिना, वहाँ से चल दी, उसका विचार था कि वह कोई कठिन कार्य नहीं था अतः वह घर-घर जाकर पूछने लगी कि उनके यहाँ पहले कभी कोई मरा तो नहीं है ? परन्तु वह जल्दी ही निराश होकर लौट आई। वह जहां, और जिस द्वार पर भी गई वहाँ पर उसको एक ही उत्तर मिला कि उनके पूर्वज इत्यादि बहुत से लोग पहले मर चुके थे। उसे कोई भी ऐसा घर अथवा परिवार नहीं मिला जहां कोई न मरा न हो। इस पर गुरुदेव ने उसे कहा, देखो देवी आपके साथ कोई ऐसी अनहोनी घटना तो घटी नहीं जिसके लिए तुम इतनी दुखी हो रही हो, यह मात लोक एक मुसाफिरखाना है। यहाँ इसी प्रकार आवागमन सदैव बना रहता है। अर्थात ऐसी घटना सबके साथ घटित होती चली आई है। गुरुदेव की युक्ति से अब वह जीवन का रहस्य जान चुकी थी। अतः उसका मन शान्त हो चुका था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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