63. राजपूत चौधरी, धर्म सिंह (जयपुर
नगर, राजस्थान)
श्री गुरू नानक देव जी उज्जैन से झालावाड़, कोटा तथा बुंदी होते
हुए जयपुर नगर में पहुँचे। आप जी ने नगर के बाहर एक निर्जन स्थान पर आसन जमाया। भाई
मरदाना जी जल के लिए नगर पहुँचे क्योंकि वहाँ कुँए इत्यादि नहीं होते। अतः स्थानीय
लोग वर्षा का पानी जलाशय में सँजोकर रखते हैं। वहाँ पर उनको चौधरी धर्म सिंह नामक
एक जाट मिला, जो कि अपने नाम के अनुसार ही धर्मी पुरुष था। उसने भाई जी को आँगतुक
जानकर आदर सत्कार से भोजन कराया तथा पूछा, आप अकेले हैं अथवा और व्यक्ति भी साथ में
है। उत्तर में भाई जी ने कहा, मैं अकेला नहीं हूँ मेरे साथ मेरे गुरुदेव हैं परन्तु
वह किसी के द्वार पर नहीं जाते। यह जानकर चौधरी धर्म सिंह ने कुछ खाद्य सामग्री साथ
ली और भाई जी के साथ गुरुदेव के दर्शनों को आया। भाई जी की रबाब के सँगीत में
कीर्तन श्रवण करके वह अति प्रसन्न हुआ तथा प्रार्थना करने लगा, हे गुरुदेव ! आप
हमारे नगर में पधारकर हमें कृतार्थ करें। उसकी प्रार्थना पर गुरुदेव नगर में गए।
चौधरी की हवेली में सुबह-शाम प्रभु स्तुति में कीर्तन तथा प्रवचन होने लगे। गुरुदेव
की महिमा राजा सुधरसैन ने भी सुनी। उसने भी गुरुदेव को निमन्त्रण भेजा परन्तु
गुरुदेव नहीं गए। इस पर राजा स्वयँ गुरुदेव के दर्शनों को आया तथा पूछने लगा, आप जी
ने मेरा निमन्त्रण स्वीकार क्यों नहीं किया। उत्तर में गुरुदेव ने कहा, हे राजन !
हम सन्तोषी हैं तथा सन्तोष की ही शिक्षा देते हैं जबकि आप इस प्रवृति के विपरीत
आचरण करते हो हम इसलिए नहीं आए। वह आरोप सुनकर राजा बोला, मुझसे ऐसी कौन सी भूल हुई
है जिसके लिए आपने मुझे असँतोषी बता रहे हैं। गुरुदेव ने कहा, तुम अपने राज्य के
विस्तार की चेष्टा में आए दिन बिना कारण अपने पड़ोसी छोटे-छोटे रजवाड़ों को पराजित
करने की धुन में रहते हो तथा राजपूत होने के झूठे अभिमान में अनेकों सैनिक आपसी
कलह-कलेश में मरवा डालते हो। जिससे कई नारियाँ विधवा का जीवन जीने की विवशता के
कष्ट भोगती हैं। राजा ने इस सत्य को स्वीकार किया और कहा, आप ठीक कहते हैं। कई बार
लड़ाई का मूल कारण कोई भी नहीं होता, केवल झूठा अभिमान ही असली समस्या होती है और हम
एक दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं। गुरुदेव ने उसे परामर्श दिया, आप सभी छोटे बड़े
राजवाड़ों को निमन्त्रण भेजकर एक सम्मेलन का आयोजन करें जिसमें सभी मिल बैठकर आपसी
छोटे-बड़े झगड़े पँचायती रूप में सुलझा लें ताकि आइन्दा इस क्षेत्र के लोग बिना कारण
आपसी फूट में न मारे जाएँ। यदि वीरता ही दिखानी हो तो सँगठित होकर किसी विदेशी
आक्रमणकारी पर दिखाई जाए। राजा इस प्रस्ताव पर सहमत हो गया तथा उसने ऐसा ही करने का
वचन दिया।