61. हृदय की पवित्रता ही स्वीकार्य (उज्जैन
नगर, मध्यप्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी इन्दौर नगर से उज्जैन नगर पहुँचे। यह
प्राचीन ऐतिहासिक नगर सपरा नदी के किनारे है। वहाँ पर पौराणिक किवदँतियों अनुसार
बारह वर्षा पश्चात् अमृत धारा प्रवाहित होती है, अतः वहाँ पर कुम्भ मेला लगता है।
गुरुदेव जी के वहाँ पधारने के समय कुम्भ मेले की तैयारियाँ हो रही थी। सपरा नदी के
तट पर उन दिनों योगियों के बारह सम्प्रदायों में से भृतहरी नामक योगी समुदाय का एक
अखाड़ा था। मेले के कारण जनता में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से वे सभी
दूर-दूर से पहुँच रहे थे। योगियों के अखाड़े के निकट ही एक वृक्ष के नीचे गुरुदेव ने
भी अपना खेमा लगाया और सुबह-शाम हरियश में कीर्तन करने लगे। कीर्तन के उपरान्त
प्रवचन होने लगे। जिससे मेले में आप जी आकर्षण के केन्द्र बन गए क्योंकि आप तो
कर्मकाण्डों का खण्डन करके आध्यात्मिक जीवन जीने पर बल देते थे। जैसा कि केवल नदी
में स्नान करके या दीपक जलाकर तैराने भर से मोक्ष नहीं मिलता वह तो शुभ आचरण से
मिलता है, जो व्यक्ति सत्यमार्ग का गामी है वह शरीर की अपेक्षा हृदय की पवित्रता पर
अपना ध्यान केन्द्रित करता है। यही प्रभु मिलन की अचूक युक्ति है।
अधिआतम करम करे ता साचा ।। मुक्ति भेदु किआ जाणै काचा ।।
ऐसा जोगी जुगति बीचारे ।। पंच मारि सच उरिधारै ।। रहाउ ।।
जिस कै अंतिर साच वसावै ।। जोग जुगति की कीमति पावै ।।
रवि ससि एको ग्रिह उदिआनै ।। करणी कीरति करम समानै ।।
ऐक सबद इक भिखिया मांगै ।। गिआनु धिआनु जुगति सचु जागै ।।
भै रचि रहै न बाहरि जाइ ।। कीमति कउण कहै लिव लाइ ।।
आपे मेले भरमु चुकाए ।। गुर परसादि परम पदु पाए ।।
गुर की सेवा सबदु वीचारु ।। हउमै मारे करणी सार ।।
जप तप संजम पाठ पुराणु ।। कहु नानक अपरंपर मानु ।। राग गउड़ी, अंग 223
अर्थ: "ऐसा मनुष्य जोगी कहलवाने का हकदार हो सकता है जो जीवन की
सही जुगति समझता है। वो जीवन जुगति यह है कि कामादिक पाँचों विकारों को मारकर सदा
कायम रहने वाले परमात्मा की याद को अपने दिल में टिकाना। जब मनुष्य आत्मिक जीवन को
ऊँचा करने वाले करम करता है, तब ही वो सच्चा जोगी है। पर जिसका मन विकारों से भरा
पड़ा है, वो भला विकारों से मुक्त्ति हासिल करने का भेद क्या जानेगा ? जिस मनुष्य के
अन्दर परमात्मा अपना नाम बसाता है, वो ही मिलाप की जुगति की कद्र समझता है। तपस,
ठंड, जँगल घर उसे एक समान लगते हैं और परमात्मा की तारीफ की बाणी यानि सिफत सलाह
उसके करम हैं यानि कि सोते हुए भी वह परमात्मा की सिफत सलाह में लगा रहता है। दर-दर
से रोटियाँ माँगने की जगह ऐसा जोगी गुरू के दर से परमात्मा की सिफत सलाह की बाणी
माँगते हैं और उसके अन्दर परमात्मा की गहरी समझ आ जाती है और उनके अन्दर सिमरन रूपी
जुगति जाग जाती है। वो जोगी सदा परमात्मा के डर, अदब में लीन रहता है और उससे बाहर
नहीं जाता। ऐसे जोगी का भला कौन मूल्य पा सकता है। वो तो सदा प्रभु चरणों में अपना
ध्यान जोड़े रहता है। ये जोग साधना के हठ कुछ नहीं सँवार सकते। प्रभु आप ही अपने आप
से मिलाता है और जीव की भटकाहट दूर करता है। गुरू की किरपा से मनुष्य सबसे ऊँचा
आत्मिक दर्जा प्राप्त कर सकता है। असल जोगी गुरू द्वारा बताई सेवा करता है,
गुरूशब्द को अपने विचार बनाता है, अहँकार को अपने अन्दर से मारता है। हे नानक,
बेअंत प्रभु की सिफत सलाह में अपने आप को लगाना, यहीं हैं जोगी के जप, तप सँजम और
पाठ और यहीं है जोगी की पुराण आदि कोई धर्म पुस्तक।" दूसरी तरफ जनता को अपनी ओर
आकृष्ट करने के लिए योगी भरसक प्रयत्न कर रहे थे ताकि जनसमूह उनके दिखाए मार्ग पर
विश्वास करे। किन्तु गुरुदेव अपनी मधुर बाणी से लोगों को जागृत कर रहे थे।