60. साधसंगत की महिमा (इन्दौर नगर,
मध्यप्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी खण्डवा से इन्दौर पहुँचे। यहाँ पर भी आप
जी ने नगर के बाहर एक इमली के वृक्ष के नीचे अपना डेरा लगाया जो कि चौराहे के जलाशय
के निकट ही था (इस स्थान पर इमली साहिब गुरूद्वारा है) आप जी ने अमृत बेला में अपनी
रीति अनुसार प्रभु स्तुति में भाई मरदाना जी के रबाबी सँगीत में कीर्तन प्रारम्भ कर
दिया। शौच-स्नान के लिए जो कोई भी नगर के बाहर आया, वह आपके मधुर कीर्तन के आकर्षण
से आपके निकट खिंचा चला आया और कीर्तन श्रवण करते हुए मन एकाग्र करके प्रभु चरणों
में जुड़ने का आँनद उठाने लगा। आप जी इसी प्रकार सुबह-शाम जनसमूह इकट्ठा करके कीर्तन
के पश्चात् आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए अपने प्रवचनों द्वारा उनका मार्गदर्शन कर
रहे थे, कि एक दिन दो पड़ौसी मित्र आप के पास आए। औपचारिकता के पश्चात् जिज्ञासावश
पूछने लगे: कि साधसंगत में आने का क्या महत्व है ? गुरुदेव ने उत्तर दिया: कि जो
व्यक्ति परमार्थ के लिए साधसंगत में जाकर हरि यश सुनता अथवा गाता है उसके कार्य
सिद्ध होते चले जाते हैं अर्थात उसके काम में बरकतें आती हैं तथा उसका जीवन सफल हो
जाता है। इसके विपरीत जो दुर्जनों की संगत में पड़ता है वह दर-दर की ठोकरें खाता है
तथा अपने श्वासों की पूँजी नष्ट करते हुए अपमानित जीवन जीता है। किन्तु वे दोनों
कहने लगे: हमारा तो अनुभव आपके कथन के विपरीत है। पहला मित्र कहने लगा: गुरू जी !
मैं आपके पास कई दिनों से शुभ कर्मों की शिक्षा धारण करने आ रहा हूँ, अतः मैंने अपने
इस मित्र को भी प्रेरित किया था कि यह भी मेरे साथ आपके पास साधसंगत के लिए चले।
परन्तु जब यह मेरी प्रतीक्षा कर रहा था तो उस समय जमीन कुरेदते हुए इसे एक मोहर,
चाँदी का सिक्का मिला है, जबकि मुझे रास्ते में एक सूल चुभा है जिसके दर्द के कारण
मैं समय से नहीं पहुँच पाया। इस वृताँत को सुनकर गुरुदेव ने कहा, आपका निर्णय
प्रत्यक्ष के आधार पर करना होगा ताकि किसी के मन में शँका उत्पन्न न हो अतः चलो उस
जगह पर चलें जहां यह घटना घटित हुई है। इस पर वे लोग गुरुदेव को वहाँ ले गए जहां से
मोहर मिली थी। गुरुदेव ने आदेश दिया कि उस स्थान को खोदा जाए। देखते ही देखते वहाँ
से एक घड़ा निकला जो कि कोयलों से भरा पड़ा था। उसके पश्चात् वहाँ पहुँचे जहां दूसरे
मित्र को सूल चुभा था। वहाँ पर खोदने से सूली के आकार की तीखी नोक वाली एक लकड़ी मिली।
यह देखकर गुरुदेव ने निर्णय दिया: आप जो भी कर्म करते हैं। वह प्रफुल्लित होते हैं
कुकर्म करने पर भाग्य में लिखी मोहरें कोयले का रूप धारण कर गई हैं और साधसंगत करने
पर सूली का काँटा बनकर चुभा है। यदि शुभ कर्म करोगे तो जन्म सफल हो सकता है। क्योंकि
मानव के लिए मातलोक कर्म-भूमि है। यहाँ पर कर्म ही सँचित करने आते हैं। शुभ कर्मों
से बड़े से बड़ा सँकट भी छोटा रूप धारण करके टल जाता है। इस प्रकार अशुभ कर्म करने पर
भाग्य में होने वाली प्राप्तियाँ भी नष्ट हो जाती हैं।