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6. पुष्कर तीर्थ (अजमेर, राजस्थान)

श्री गुरू नानक देव जी चिश्ती के मकबरे से होते हुए वहाँ से चार कोस दूर हिन्दू तीर्थ पुष्कर पहुँचे। हिन्दू विचारधारा के अनुसार अठसठ तीर्थों में से अजमेर को भी एक माना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि वहाँ पर स्नान करना अनिवार्य है नहीं तो तीर्थ यात्रा अधुरी रह जाती है। गुरुदेव ने एक रमणीक स्थल पर मरदाना जी को कीर्तन प्रारम्भ करने को कहा तथा स्वयँ उच्चारण करने लगे:

नावण चले तीरथी मनि खेटै तनि चोर ।।
इकु भाउ लथी नातिआ दोइ भा चड़ीअसु होर ।।
बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर ।।
साध भले अणनातिआ चोर सि चोरा चोर ।। राग सूही, अंग 789

मधुर बाणी सुनकर तीर्थ यात्रियों की भीड़ कीर्तन श्रवण करने के लिए धीरे-धीरे एकत्रित होने लगी। सभी लोग गुरुदेव से प्रवचन सुनाने के लिए आग्रह करने लगे। गुरुदेव ने तब कहा– हे भक्तजनो ! ईश्वर की प्राप्ति तीर्थों के स्नान करने मात्र से नहीं होती, क्योंकि वह तो मन की पवित्रता पर प्रसन्न होता है। हम केवल शरीर की पवित्रता तक सीमित रहते हैं और अपने को धन्य मान लेते हैं, जबकि हमें अपना ध्यान मन की शुद्धता पर केन्द्रित करना चाहिए, जो कि हम नहीं करते। प्रायः देखा गया है कि तीर्थों पर मन पवित्र करने के स्थान पर अपवित्रता हाथ लगती है क्योंकि मन चँचल है। उसको नियन्त्रण करना अति कठिन है। वास्तव में तीर्थों पर केवल शरीरिक रूप से स्नान करना वैसा ही है जैसे किसी तुमड़ी, एक विवेश प्रकार के कड़वे फल को स्नान करवाना। तुमड़ी को जल से धो देने से उसके अन्दर का विष नहीं जाता वह सदैव कड़वापन लिए रहता है। इसलिए वास्तविक साधु, तीर्थों पर स्नान के बिना भी, यूँ ही भले हैं, क्योंकि तीर्थों के स्नान से उनके मन में विकार तो नहीं पैदा होते।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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