58. सईयद शाह हुसैन फ़क्कड़ (नांदेड़ नगर,
महाराष्ट्र)
श्री गुरू नानक देव जी बिदर से महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर श्री
अवचल नगर हजूर साहिब में पहुँचे। उन दिनों वहाँ पर नगर के बाहर एक सूफी फ़कीर सईयद
शाह हुसैन फ़क्कड रहता था। उनके मुरीदों ने उन्हें बताया, गाँव के बाहर एक फ़कीर आए
हैं। वह गाकर अपना कलाम कहते हैं जो कि बहुत ज्ञानवर्धक तथा शान्तिदायक है। यह
सुनकर सईयद शाह हुसैन जी, गुरुदेव के दीदार को आया। जैसे ही मिलन हुआ वर्षा
प्रारम्भ हो गई। शाह हुसैन विनती करने लगा: हे फ़कीर ! साईं ! आप हमारे यहाँ तशरीफ
ले आएँ जिससे आप भीगने से बच जाएँगे। उत्तर में गुरुदेव ने कहा: आप हमारी चिन्ता न
करें, हमें कुदरत के हर रँग में रहने की आदत है। किन्तु शाह हुसैन नहीं माना, वह
कहने लगा: आप हमारे मेहमान हैं इसलिए आप एक बार हमें सेवा का मौका जरूर दें।
गुरुदेव ने उसका स्नेह भरा आग्रह देखकर उसके पास रहना स्वीकार कर लिया। फ़कीर शाह
हुसैन जो कि उन दिनों युवावस्था में था और आसपास के गाँव-देहात में बहुत मान्यता
रखता था। गुरुदेव ने अनुभव किया कि फ़कीर तो आध्यात्मिक जीवन जीना चाहता है, परन्तु
लोगों ने उसको ही व्यक्तिगत रूप में पूजना शुरू कर दिया है। इसलिए समय रहते गुरुदेव
जी ने सावधान किया: ऐसा न हो कि कुछ चापलूस लोगों के मुख से वह अपनी बढ़ाई सुनकर और
विचलित होकर अपने उद्देश्य से भटक जाए। अतः अपनी मान्यता न होने दें। पूजा तो केवल
उस खुदा की ही होनी चाहिए। बन्दे को तो सिर्फ़ बन्दगी में ही रहकर उसका शुक्र अदा
करना चाहिए। करामातें दिखाने से आत्मिक बल व्यर्थ चला जाता है। जैसे कोई तस्कर
अमूल्य निधि लूटकर ले गया हो। ठीक वैसे ही खुशामदी लोग इबादत का फल लूटकर ले जाते
हैं।