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57. जनहित में जल की व्यवस्था (बिदर नगर, कर्नाटक प्रदेश)

श्री गुरू नानक देव जी हैदराबाद से कर्नाटक प्रदेश के बिदर नगर पहुँचे जोकि पठारी क्षेत्र है और ऊबड़-खाबड़ होने के कारण वहाँ पर मीठे पानी की भारी कमी थी। गुरुदेव ने चट्टान के नीचे एक खुले स्थान पर अपना डेरा लगाया। स्थानीय लोगों से सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया, मीठे जल के स्त्रोत पर दो सूफी फ़कीरों का कब्ज़ा है। वे पानी, केवल उन्हीं लोगों को लेने देते हैं, जो दीन स्वीकार कर लेते हैं। गुरुदेव ने इस बात पर आपत्ति की और कहा, पानी प्रकृति का अमूल्य उपहार, समस्त मानव समाज के लिए एक समान है, इसके वितरण में फ़कीरों को मतभेद नहीं करना चाहिए। पीर सईयद याकूब अली तथा पीर जलालउद्दीन अपनी खानकाह पर जनसाधारण को ताबीज़ इत्यादि बाँटते तथा तान्त्रिक विद्या से लोगों को प्रभावित करते थे। जिससे उनकी मान्यता बहुत बढ़ गई थी। अतः उनके मुरीदों ने काले इल्म से डेरे के लिए धन राशि इक्ट्ठी करने के लिए लोगों को भ्रम में उलझाकर पाखण्डी बना रखा था। गुरुदेव के समक्ष स्थानीय निवासी विनती करने लगे, हे गुरुदेव! आप हमारी पीने के पानी की समस्या का समाधान कर दें तो हम आपके अति आभारी होंगे। गुरुदेव ने उनकी कठिनाइयों को समझा तथा उन्हें परामर्श दिया कि आप सभी मिलकर प्रभु चरणों में आराधना करें तो उस कृपालु प्रभु की आप लोगों पर अवश्य ही अनुकम्पा होगी। इस विचार को सुनकर, मीठे जल का इच्छुक जनसमूह, एकत्र होकर गुरुदेव के पास उपस्थित हुआ एवँ गुरुदेव द्वारा बताई विधि अनुसार, उन्हीं के नेतृत्व में प्रभु से प्रार्थना करने लगा। प्रार्थना के समाप्त होते ही गुरुदेव ने एक चट्टान के टुकड़े को सरकाने का आदेश दिया। जैसे ही प्रभु की जय, जयकार के नारों से आकाश गूँजा। उसी क्षण देखते ही देखते मीठे जल की एक धारा प्रवाहित हो निकली। सभी लोग खुशी से नाचने लगे। इन सूफी महानुभावों को जब इस बात का पता चला तो वे आश्चर्यचकित होकर गुरू जी को मिलने आए। गुरु जी ने उनका स्वागत किया और कहा: आप "सूफी फ़कीर" होकर ख़ालक की ख़लकत में मज़हब के नाम पर भेदभाव क्यों करते हैं ? इसके उत्तर में फ़कीर कहने लगे: जी ये लोग "बुत-परस्त" हैं। अतः मोमन का हक वाजिब है। इस पर गुरुदेव ने कहा: इसका अर्थ यह हुआ कि आप "अल्लाह मियाँ" से भी अपने आप को ज्यादा योग्य समझते हैं जिसने सृष्टि की रचना की है। वह तो सभी कुछ बिना भेदभाव किए, बाँटे जा रहा है, उसकी रहमतें तो हर वक्त, हर एक प्राणी पर एक जैसी ही हो रही हैं। वह तो सूर्य से नहीं कहता कि हिन्दू के यहाँ धूप न दो या बादल हिन्दू के यहाँ बरसो। उन फ़कीरों को जब इस बात का उत्तर नहीं सूझा तो वे गुरुदेव से क्षमा याचना करते हुए चरणों में आ गिरे। और कहने लगे: हम तुच्छ बुद्धि वाले हैं। आप हमारा मार्गदर्शन करें। गुरुदेव ने तब कहा: खुदा अपनी सभी नयामतें खलकत में बिना रुकावट दे रहा है। लोग अपने-अपने नसीबों के अनुसार, सबका लाभ उठा रहे हैं। यदि एक नयामत उसने किसी को बाँटने के लिए दे दी तो वह उसके हुक्म की अदूली क्यों करे ? ऐसी शिक्षा प्राप्त कर फ़कीर सन्तुष्ट हो गए। गुरु जी ने आदेश दिया: यहाँ "धर्मशाला बनवाकर" उसमें सबको समानता तथा मैत्री भाव का सबक सिखाओ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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